अष्टावक्र गीता
अध्याय ११
श्लोक १
भावाभावविकारश्च स्वभावादिति निश्चयी।।
निर्विकारो गतक्लेशः सुखेनैवोपशाम्यति।।१।।
(भाव-अभाव-विकारः च स्वभावात् इति निश्चयी। निर्विकारो गतक्लेशः सुखेन एव उपशाम्यति।।)
अर्थ : जिसे यह निश्चय हो जाता है कि भाव तथा विलय के रूप में होते रहनेवाला परिवर्तन स्वभाव की ही अभिव्यक्ति है, उसके क्लेश सुखपूर्वक शान्त हो जाते हैंं और वह शान्ति में स्थित हो जाता है।
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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ८,
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।१४।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಏಕಾದಶೋಧ್ಯಾಯಃ
ಶ್ಲೋಕ ೧
ಭಾವಾಭಾವವಿಕಾರಶ್ಚ ಸ್ವಭಾವಾಜಿತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||
ನಿರ್ವಿಕಾರೋ ಗತ್ಲೇಶಃ ಸುಖೇನೈವೋಫಶಾಮ್ಯತಿ||೧||
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Ashtavakra Gita
Chapter 11
Stanza 1
One who has realized that existence, non-existence and change are in the nature of things, easily finds repose, being unperturbed and free from pain.
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