Friday, 3 March 2023

तृष्णा मात्रात्मको बन्धः

अष्टावक्र गीता

अध्याय १०

श्लोक ४

तृष्णा मात्रात्मको बन्धः तन्नाशो मोक्ष उच्यते।।

भवासंसक्तिमात्रेण प्राप्तितुष्टिर्मुहुर्मुहुः।।४।।

(तृष्णा मात्रात्मकः बन्धः तत् नाशः मोक्षः उच्यते।

भव-असंसक्ति मात्रेण प्राप्ति-तुष्टिः मुहुः मुहुः।।)

अर्थ : कामना / तृष्णा ही एकमात्र बन्धन है, और उसके नाश को ही मोक्ष कहा जाता है। संसार, तृष्णा से पुनः पुनः उत्पन्न होती रहनेवाली आसक्ति (और आसक्ति से उत्पन्न तृष्णा) है। और संसार से आसक्ति का नाश ही नित्य विद्यमान प्राप्तिरूपी स्थायी (आत्मज्ञानरूपी) तुष्टि है। 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೦

ಶ್ಲೋಕ ೪

ತೃಷ್ಣಾ ಮಾತ್ರಾತ್ಮಕೋ ಬನ್ಧಃ

ತನ್ನಾಶೋ ಮೋಕ್ಷ ಉಚ್ಯತೇ||

ಭವಾಸಂಸಕ್ತಿ ಮಾತ್ರೆಣ

ಫ್ರಾಪ್ತಿತುಷ್ಟಿರ್ಮುಹುರ್ಮುಹುಃ||೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 10

Stanza 4

Bondage consists only in desire and its destruction is called liberation. By non-attachment to the word alone, is attained constant joy from the realization (of the Self).

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