अष्टावक्र गीता
अध्याय ११
श्लोक ४
सुखदुःखे जन्ममृत्यू दैवादेवेति निश्चयी।।
साध्यादर्शी निरायासः कुर्वन्नपि न लिप्यते।।४।।
(सुखदुःखे जन्ममृत्यू दैवात् एव इति निश्चयी। साध्यादर्शी निरायासः कुर्वन् अपि न लिप्यते।।)
अर्थ : सुख और दुःख, जन्म और मृत्यु दैव से ही घटित होते हैं इस प्रकार के आदर्श निश्चय से युक्त मनुष्य अपने सभी कर्मों को उनसे अलिप्त रहते हुए, प्रयास न करते हुए ही कर लेता है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧
ಶ್ಲೋಕ ೪
ಸುಖಜುಃಖೇ ಜನ್ಮಮೃತ್ಯೂ ದೈವಾದೇವೇತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||
ಸಾಧ್ಯಾದರ್ಶೀ ನಿರಾಯಾಸಃ ಕೀರ್ವನ್ನಪಿ ನ ಲಿಪ್ಯತೇ ||೪||
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Ashtavakra Gita
Chapter 11
Stanza 4
Knowing for certain that happiness and misery, birth and death are due to one's fate, one comes to see that it is not possible to accomplish the desired things and thus becomes in-active and is not attached even though engaged in actions.
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