अष्टावक्र गीता
अध्याय ११
श्लोक २
ईश्वरः सर्वनिर्माता नेहान्य इति निश्चयी।।
अन्तर्गळितसर्वाशः शान्तः क्वापि न सज्जते।।२।।
(ईश्वरः सर्वनिर्माता न इह अन्यः इति निश्चयी। अन्तर्गळित-सर्वाशः शान्तः क्व-अपि न सज्जते।।)
अर्थ : एकमेव ईश्वर ही सब का निर्माण करनेवाला है दूसरा और कोई नहीं है जो इसे निश्चयपूर्वक जान लेता है, उसके हृदय की समस्त इच्छाएँ शान्त हो जाती हैं। इस प्रकार से अपनी समस्त आशाएँ त्यागकर शान्तचित्त हुए मनुष्य की किसी के भी प्रति कोई आसक्ति शेष नहीं रह जाती।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧
ಶ್ಲೋಕ ೨
ಈಶ್ವರಃ ಸರ್ವನಿರ್ಮಾತಾ ನೇಹಾನ್ಯ ಇತಿ ನಿಶ್ಚಿಯೀ||
ಅನ್ತರ್ಗಳಿತಸರ್ವಾಶಃ ಶಾನ್ತಃ ಕ್ವಾಪಿ ನ ಸಜ್ಜತೇ ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 11
Stanza 2
Knowing for certain that Ishvara is the creator of All and that there is no other here, one becomes peaceful with all his desires set at rest within and is not attached to anything whatsoever.
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