अष्टावक्र गीता
अध्याय १२
श्लोक ३
समाध्यासादि विक्षिप्तौ व्यवहारः समाधये।।
एवं विलोक्य नियममेवमेवाहमस्थितः।।३।।
(सं-आ-ध्यास आदि विक्षिप्तौ व्यवहारः समाधये। एवं विलोक्य नियमं एवं एव अहं आस्थितः।।)
अर्थ : सम आ ध्यास या समाधि आस (दोनों प्रकार से अस् और आस् धातु से) यम-नियम आदि की चेष्टा भी क्षिप्त, चंचल और अशान्त चित्त को शान्त और सुस्थिर करने के लिए किया जाना होता है, यह देखकर मैं उस सबके लिए चेष्टा तक न करते हुए, वैसे ही अपने निज स्वरूप में सुस्थित हूँ।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨
ಶ್ಲೋಕ ೩
ಸಮಾಧ್ಯಾಸಾದಿ ವಿಕ್ಷಿಪ್ತೌ
ವ್ಯವಹಾರಃ ಸಮಾಧಯೇ ||
ಏವಂ ವಿಲೋಕ್ಯ ನಿಯಮ-
ಮೇವಮಮೇವಾಹಮಾಸ್ಥಾತಃ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 12
Stanza 3
When there is distraction of mind owing to superimposition etc., effort is made, Seeing this to be the rule, thus verily do I abide.
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