Monday, 20 March 2023

समाध्यासादि विक्षिप्तौ

अष्टावक्र गीता

अध्याय १२

श्लोक ३

समाध्यासादि विक्षिप्तौ व्यवहारः समाधये।।

एवं विलोक्य नियममेवमेवाहमस्थितः।।३।।

(सं-आ-ध्यास आदि विक्षिप्तौ व्यवहारः समाधये। एवं विलोक्य नियमं एवं एव अहं आस्थितः।।)

अर्थ : सम आ ध्यास या समाधि आस (दोनों प्रकार से अस् और आस् धातु से) यम-नियम आदि की चेष्टा भी क्षिप्त, चंचल और अशान्त चित्त को शान्त और सुस्थिर करने के लिए किया जाना होता है, यह देखकर मैं उस सबके लिए चेष्टा तक न करते हुए, वैसे ही अपने निज स्वरूप में सुस्थित हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೨

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಸಮಾಧ್ಯಾಸಾದಿ ವಿಕ್ಷಿಪ್ತೌ

ವ್ಯವಹಾರಃ ಸಮಾಧಯೇ ||

ಏವಂ ವಿಲೋಕ್ಯ ನಿಯಮ-

ಮೇವಮಮೇವಾಹಮಾಸ್ಥಾತಃ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 12

Stanza 3

When there is distraction of mind owing to superimposition etc., effort is made, Seeing this to be the rule, thus verily do I abide. 

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