Monday, 13 March 2023

नाहं देहो न मे देहो

अष्टावक्र गीता

अध्याय ११

श्लोक ६

नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति* निश्चयी।।

कैवल्यमिव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम्।।६।।

(न अहं देहः न मे देहः बोधः अहं इति निश्चयी। कैवल्यंं इव संप्राप्तः न स्मरति अकृतं कृतम्।। *पाठान्तर : बोधोहमिति, बोधोऽहमिति, - दोनों प्रकार से स्वीकार्य है जैसे कठोपनिषद् में "गूढोत्मा" शब्द का प्रयोग जो व्याकरणसम्मत भी है और ऋषि-सम्मत भी है।)

अर्थ : "न मैं शरीर हूँ, और न ही शरीर मेरा है, मैं बोध हूँ", यह निश्चय जिसे हो जाता है, वह कैवल्य को प्राप्त हो जाता है, और उसे "मैंने क्या किया और क्या नहीं किया", यह भी स्मरण नहीं रह जाता है ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೧

ಶ್ಲೋಕ ೬

ನಾಹಂ ದೇಹೋ ನ ಮೇ ದೇಹೋ

ಬೋಧೋಹಮಿತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ ||

ಕೈವಲ್ಯಮಿವ ಸಂಪ್ರಾಪ್ತೋ

ನ ಸ್ಮರತ್ಯಕೃತಂಕೃತಮ್||೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 11

Stanza 6

"I am not the body,  Nor is the body mine, I am Intelligence itself ". One who has realized this for certain, does not remember what he has done or not done, as if he has attained the state of absoluteness.

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