Tuesday, 21 February 2023

नाना मतं महर्षीणां

अष्टावक्र गीता

अध्याय ९

श्लोक ५

नाना मतं महर्षीणां साधूनां योगिनां तथा।।

दृष्ट्वा निर्वेदमापन्नः को न शाम्यति मानवः।।५।।

(नाना मतं महर्षीणां साधूनां योगिनां तथा। दृष्ट्वा निर्वेदं आपन्नः कः न शाम्यति मानवः।।)

अर्थ : महर्षियों, साधुओं तथा योगियों के अनेक और भिन्न भिन्न मतों को देखने के बाद, कौन सा ऐसा मनुष्य है, जो उन विभिन्न और नाना मतों के प्रति उदासीन न हो जाता हो, और इस प्रकार से जिसका मन अनायास ही शान्त न हो जाता हो!

प्रसंगवश श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २ का यह श्लोक दृष्टव्य है :

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।।

तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।५२।।

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं --

जब तुम्हारी बुद्धि मोह रूपी दलदल से ऊपर उठ जाएगी, तब तुम समस्त सुनने योग्य प्रतीत होनेवाले और सुने हुए भिन्न भिन्न और अनेक मतों के प्रति उदासीन हो जाओगे।

--

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೯

ಶ್ಲೋಕ ೫

ನಾನಾ ಮತಂ ಮಹರ್ಷೀಣಾಂ

ಸಾಧೂನಾಂ ಯೋಗಿನಾಂ ತಥಾ||

ದೃವ್ಟ್ವಾ ನಿರ್ವೇದಮಾಪನ್ನಃ

ಕೋ ನ ಶಾಮ್ಯತಿ ಮಾನವಃ||೫||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 9

Stanza 5

What man is there, who having observed the diversity of opinions among the great seers, saints and yogis, does not become completely indifferent (to their opinions) and attain quietude?

***



--



No comments:

Post a Comment