अष्टावक्र गीता
अध्याय ९
श्लोक ५
नाना मतं महर्षीणां साधूनां योगिनां तथा।।
दृष्ट्वा निर्वेदमापन्नः को न शाम्यति मानवः।।५।।
(नाना मतं महर्षीणां साधूनां योगिनां तथा। दृष्ट्वा निर्वेदं आपन्नः कः न शाम्यति मानवः।।)
अर्थ : महर्षियों, साधुओं तथा योगियों के अनेक और भिन्न भिन्न मतों को देखने के बाद, कौन सा ऐसा मनुष्य है, जो उन विभिन्न और नाना मतों के प्रति उदासीन न हो जाता हो, और इस प्रकार से जिसका मन अनायास ही शान्त न हो जाता हो!
प्रसंगवश श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २ का यह श्लोक दृष्टव्य है :
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।५२।।
भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं --
जब तुम्हारी बुद्धि मोह रूपी दलदल से ऊपर उठ जाएगी, तब तुम समस्त सुनने योग्य प्रतीत होनेवाले और सुने हुए भिन्न भिन्न और अनेक मतों के प्रति उदासीन हो जाओगे।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೯
ಶ್ಲೋಕ ೫
ನಾನಾ ಮತಂ ಮಹರ್ಷೀಣಾಂ
ಸಾಧೂನಾಂ ಯೋಗಿನಾಂ ತಥಾ||
ದೃವ್ಟ್ವಾ ನಿರ್ವೇದಮಾಪನ್ನಃ
ಕೋ ನ ಶಾಮ್ಯತಿ ಮಾನವಃ||೫||
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Ashtavakra Gita
Chapter 9
Stanza 5
What man is there, who having observed the diversity of opinions among the great seers, saints and yogis, does not become completely indifferent (to their opinions) and attain quietude?
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