अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक १७
बोधमात्रोऽहमज्ञानादुपाधिः कल्पितो मया।।
एवं विमृशतो नित्यं निर्विकल्पे स्थितिर्मम।।१७।।
(बोधमात्रः अहं अज्ञानात् उपाधिः कल्पितः मया। एवं विमृशतः नित्यं निर्विकल्पे स्थितिः मम।)
अर्थ :
यद्यपि अहं (मैं)- आत्मा बोधमात्र है, अज्ञानवश मेरे द्वारा उपाधि कल्पित कर ली जाती है (और प्रमादवश अपने आपको उपाधि मान लिया जाता है)। और जब इस पर ध्यानपूर्वक विमर्श किया जाता है तो पाया जाता है कि मेरा वास्तविक स्वरूप तो नित्य और निर्विकल्प है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೨
ಶ್ಲೋಕ ೧೭
ಬೋಧಮಾತ್ರೋऽಹಮಜ್ಞಾಲಾ-
ದುಪಾಧಿಃ ಕಲ್ಪಿತ ಮಯಾ||
ಏವಂ ವಿಮೃಶತೋ ಲಿತ್ಯಂ
ಲಿರ್ವಿಕಲ್ಪೇ ಸ್ಥಿತಿರ್ಮಮ||೧೭||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 17
I am Pure Intelligence. Through ignorance (in-attention) only, I have imposed limitation (upon myself). Constantly reflecting in this way, I am abiding in the Absolute.
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