Tuesday, 22 November 2022

अहो विकल्पितं विश्वं

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक ९

अहो विकल्पितं विश्वमज्ञानान्मयि भासते।।

रूप्यं शुक्तौ फणी रज्जौ वारि सूर्यकरे यथा।।९।।

अर्थ :

अरे! कितना आश्चर्य है कि जिस प्रकार से केवल अज्ञान ही के कारण सीप (शुक्ता) में रजत, रज्जु में सर्प और सूर्य की किरणों में जल भासता है उसी प्रकार, केवल अज्ञानवश, कल्पना के ही कारण मुझे आत्मा में यह विश्व भासता है!

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೯

ಅಹೋ ವಿಕಲ್ಪಿತಂ ವಿಶ್ವ-

ಮಜ್ಞಾನಾಲ್ಮಯಿ ಭಾಸತೇ||

ರೂಪ್ಯಂ ಶುಕ್ತೌ ಫಣೀ ರಜ್ಜೌ

ವಾರಿ ಸೂರ್ಯಕರೇ ಯಥಾ||೯||

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Ashtavakra Gita 

Chapter 2

Stanza 9

O, Just as because of ignorance only, silver appears in the mother of pearl, snake in the rope, and water in the rays of the sun-beam, even so, the universe appears in Me.

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