अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक ३
सशरीरमहो विश्वं परित्यज्य मयाऽधुना।।
कुतश्चित्कौशलादेव परमात्मा विलोक्यते।।३।।
(सशरीरं अहं विश्वं परित्यज्य मया अधुना। कुतश्चित् कौशलात् एव परमात्मा विलोक्यते।।)
अर्थ :
अहो! अब यह भी अवश्य ही अद्भुत् ही है कि शरीर के ही साथ साथ सम्पूर्ण जगत् को ही त्याग दिए जाने पर भी, किसी अन्य कौशल (उपाय) से भी मेरे द्वारा परमात्मा को देखा जाता है!
(उस परमात्मा को, जो मुझसे अनन्य और अभिन्न, अपृथक् है। तात्पर्य यह कि वह एकमात्र चैतन्य जो कि एकमेव आत्मा और पमात्मा है, वही शरीर और जगत् की तरह भी व्यक्त होता है।)
सद्दर्शनम् --
सर्वैर्निदानं जगतोऽहमश्च।
वाच्यः प्रभुः कश्चिदपारशक्तिः।।
चित्रेऽत्र लोक्यं च विलोकित च।
पटः प्रकाशोऽप्यभवत्स एकः।।३।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೨
ಶ್ಲೋಕ ೩
ಸಶರೀರಮಹೋ ಷಿಶ್ವಂ ಪರಿತ್ಯಜ್ಯ ಮಯಾऽಧುನಾ||
ಕುತಶ್ಚಿತ್ ಕೌಶಲಾದೇವ ಪರಮಾತ್ಮಾ ವೀಲೋಕ್ಯತೇ||೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 3
O, Having Renounced the universe along with the body, I am now perceiving the Supreme Self through Wisdom (received from my Guru).
This Consciousness -- Awareness, that I Am, alone is the manifest world, I -as self, and at the same time the Supreme-Self also).
Compare : Sat-Darshanam -Verse 3 :
Of myself and the world,
All the cause admit--
A Lord of limitless power,
In this world-picture,
The canvas, the light,
The seer and the seen--
All are He, The One.
As is pointed out in the commentary of :
"Sat Darshana Bhashya",
by 'K' (-Bharadwaja Kapali Sastri).
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