Friday, 18 November 2022

तन्तुमात्रो भवेदैव

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक ५

तन्तुमात्रो भवेदैव पटो यद्वद्विचारितः।।

आत्मतन्मात्रमेवेदं तद्विद्विश्वंविचारितम्।।५।।

अर्थ :

जिस प्रकार से कपड़े के स्वरूप पर ध्यानपूर्वक विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि वह मूलतः केवल तन्तुमात्र है, उसी प्रकार  से इस विश्व के बारे में ध्यानपूर्वक विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह विश्व मूलतः मात्र आत्मा ही है, किसी प्रकार से होनेवाली इसकी प्रतीति केवल मिथ्या आभास है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೫

ತನ್ತುಮಾತ್ರೋ ಭವೇವೊದೇವ ಪಟೋ ಯದ್ವಿಚಾರಿತಃ||

ಆತ್ಮತನ್ಮಾತ್ರ ಮೇವೇದಂ ತದ್ವತ್ವಿಶ್ವಂವಿಚಾರಿತಂ||೫||

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As cloth when properly analyzed is found to be nothing but thread, even so, this universe duly considered, is nothing but the Atman.

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