Tuesday, 1 November 2022

यत्र विश्वमिदं भाति

अष्टावक्र गीता 

अध्याय १

श्लोक ९

यत्र विश्वमिदं भाति कल्पितं रज्जुसर्पवत्।।

आनन्द परमानन्दः सबोधस्त्वं सुखं चर।।९।।

अर्थ :

जहाँ (जिस चैतन्य में) यह विश्व (संपूर्ण जगत) रज्जु में कल्पित सर्प की भाँति तुम्हें प्रतीत होता है, वह निज आनन्द-परमानन्द रूपी चैतन्य ही तुम्हारा स्वरूप है। अपने आनन्द के इस स्वरूप के बोध में सुखपूर्वक अवस्थित रहो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಅಧ್ಯಾಯ ೧

ಶ್ಲೋಕ ೯

ಯತ್ರ ವಿಶ್ವಮಿದಂ ಭಾತಾಕಲ್ಪಿತಂ ರಜ್ಜುಸರ್ಪವತ್ ||

ಆನನ್ದ ಪರಮಾನನ್ದಃ ಸಬೋಧಸ್ತ್ವಂ ಸುಖಂ ಚರ||೯||

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Ashtavakra Gita 

Chapter 1

Stanza 9

That Consciousness (in which) this universe appears, being conceived like a snake in a rope is Bliss --Supreme Bliss. You are that Consciousness. Be Happy. 

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