अष्टावक्र गीता
अध्याय १
श्लोक ९
यत्र विश्वमिदं भाति कल्पितं रज्जुसर्पवत्।।
आनन्द परमानन्दः सबोधस्त्वं सुखं चर।।९।।
अर्थ :
जहाँ (जिस चैतन्य में) यह विश्व (संपूर्ण जगत) रज्जु में कल्पित सर्प की भाँति तुम्हें प्रतीत होता है, वह निज आनन्द-परमानन्द रूपी चैतन्य ही तुम्हारा स्वरूप है। अपने आनन्द के इस स्वरूप के बोध में सुखपूर्वक अवस्थित रहो।
--
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧
ಶ್ಲೋಕ ೯
ಯತ್ರ ವಿಶ್ವಮಿದಂ ಭಾತಾಕಲ್ಪಿತಂ ರಜ್ಜುಸರ್ಪವತ್ ||
ಆನನ್ದ ಪರಮಾನನ್ದಃ ಸಬೋಧಸ್ತ್ವಂ ಸುಖಂ ಚರ||೯||
--
Ashtavakra Gita
Chapter 1
Stanza 9
That Consciousness (in which) this universe appears, being conceived like a snake in a rope is Bliss --Supreme Bliss. You are that Consciousness. Be Happy.
***
No comments:
Post a Comment