अष्टावक्र गीता
अध्याय १
श्लोक १७
साकारमनृतं विद्धि निराकारं तु निश्चलम्।।
एतत्तत्त्वोपदेशेन न पुनर्भवसंभवः।।१७।।
अर्थ :
जो साकार (आकृति-रूप) प्रतीत होता है, वह अनृत, अर्थात् मिथ्या आभास मात्र है, और ऋत् अर्थात् अविकारी-नित्य को निराकार तथा निश्चल जानो। ऐसे उपदेश के तत्त्व यथार्थ को ग्रहण कर लेने पर तुम्हारे लिए फिर कभी पुनः, और जन्म-मृत्यु आदि नहीं होंगे।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧
ಶ್ಲೋಕ ೧೭
ಸಾಕಾರಮನೃತಂ ವೃದ್ಧಿ ನಿಲಾಕಾರಂ ತು ನಿಶ್ಚಲಮ||
ಏತತ್ತತ್ವೋಪದೇಶೇನ ನ ಪುನರ್ಭವಸಮ್ಭವಃ||೧೭||
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Ashtavakra Gita
Chapter 1
Stanza 17
Know that which has form to be unreal and the formless to be permanent. Through this spiritual instruction you will escape / end the possibility of rebirth.
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