Friday, 11 November 2022

साकारमनृतं विद्धि

अष्टावक्र गीता

अध्याय १

श्लोक १७

साकारमनृतं विद्धि निराकारं तु निश्चलम्।।

एतत्तत्त्वोपदेशेन न पुनर्भवसंभवः।।१७।।

अर्थ :

जो साकार (आकृति-रूप) प्रतीत होता है, वह अनृत, अर्थात् मिथ्या आभास मात्र है, और ऋत् अर्थात् अविकारी-नित्य को निराकार तथा निश्चल जानो। ऐसे उपदेश के तत्त्व यथार्थ को  ग्रहण कर लेने पर तुम्हारे लिए फिर कभी पुनः, और जन्म-मृत्यु आदि नहीं होंगे।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಅಧ್ಯಾಯ ೧

ಶ್ಲೋಕ ೧೭

ಸಾಕಾರಮನೃತಂ ವೃದ್ಧಿ ನಿಲಾಕಾರಂ ತು ನಿಶ್ಚಲಮ||

ಏತತ್ತತ್ವೋಪದೇಶೇನ ನ ಪುನರ್ಭವಸಮ್ಭವಃ||೧೭||

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Ashtavakra Gita

Chapter 1 

Stanza 17

Know that which has form to be unreal and the formless to be permanent. Through this spiritual instruction you will escape / end the possibility of rebirth.

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