Friday, 25 November 2022

अहो... दक्षो नास्ति मत्समः।

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक १३

अहो अहं नमो मह्यं दक्षो नास्तीहमत्समः।।

असंस्पृश्यशरीरेण येन विश्वं चिरं धृतम्।।१३।।

(अहो अहं नमः मह्यं दक्षः न अस्ति इह मत्समः। असंस्पृश्य-शरीरेण येन विश्वं चिरं धृतम्।।) 

अर्थ :

अहो! आत्मा को नमस्कार! इस महान आत्मा को, जिसने शरीर को स्पर्श तक न करते हुए ही, संपूर्ण जगत् को सनातन काल से ही धारण किया हुआ है, जिसकी तरह और कोई समर्थ नहीं है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೧೩

ಅಹೋ ಅಹಂ  ನಮೋ ಮಹ್ಯಂ ದ್ಷೋ ನಾಸ್ತಿ ಮತ್ಸಮಃ||

ಅಸಂಸ್ಪೃಶ್ಯ ಶರೀರೇಣ ಯನ ವಿಶ್ವಂ ಚಿರಂ ಧೃತಂ||೧೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 2

Stanza 13

Wonderful am I! Adoration to Me! There is none so capable as I, Who am bearing the universe for all eternity without touching it with body. 

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