अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक १३
अहो अहं नमो मह्यं दक्षो नास्तीहमत्समः।।
असंस्पृश्यशरीरेण येन विश्वं चिरं धृतम्।।१३।।
(अहो अहं नमः मह्यं दक्षः न अस्ति इह मत्समः। असंस्पृश्य-शरीरेण येन विश्वं चिरं धृतम्।।)
अर्थ :
अहो! आत्मा को नमस्कार! इस महान आत्मा को, जिसने शरीर को स्पर्श तक न करते हुए ही, संपूर्ण जगत् को सनातन काल से ही धारण किया हुआ है, जिसकी तरह और कोई समर्थ नहीं है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೨
ಶ್ಲೋಕ ೧೩
ಅಹೋ ಅಹಂ ನಮೋ ಮಹ್ಯಂ ದ್ಷೋ ನಾಸ್ತಿ ಮತ್ಸಮಃ||
ಅಸಂಸ್ಪೃಶ್ಯ ಶರೀರೇಣ ಯನ ವಿಶ್ವಂ ಚಿರಂ ಧೃತಂ||೧೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 13
Wonderful am I! Adoration to Me! There is none so capable as I, Who am bearing the universe for all eternity without touching it with body.
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