अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक २
यथा प्रकाशयाम्येको देहमेनं तथा जगत्।।
अतो मम जगत्सर्वमथवा न च किञ्चन।।२।।
(यथा प्रकाशयामि एकः देहं एनं तथा जगत्। अतः मम जगत् सर्वं अथवा न च किञ्चन।।)
अर्थ :
जिस प्रकार से मैं एक ही चूँकि इस देह को तथा जगत् को भी प्रकाशित करता हूँ, अतः (यह कहना अनुचित न होगा कि देह और) संपूर्ण जगत् मेरा है, अथवा कुछ भी मेरा नहीं है।
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टिप्पणी :
अतः यह कहना क्या उचित नहीं होगा कि चेतना (वैयक्तिक) या चेतना (वैश्विक), जो स्वयं ही स्वयं को व्यक्त और अव्यक्त करती है, और जिसमें कि देह, जगत् और यह स्वयं सभी एक ही साथ प्रकट और अप्रकट होते हैं, मैं हूँ? क्योंकि मैं तथा मेरा के बीच कोई विभाजन नहीं है!
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ಯಥಾ ಪ್ರಕಾಶಯಾಮ್ಯೇಕೋ
ದೇಹಮೋನಂ ತಥಾ ಜಗತ್||
ಅತೋ ಮಮ ಜಗತ್ಸ-
ರ್ವಮಥಷಾ ನ ಚ ಕಿಞ್ಚನ||೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 2
As I alone reveal this body, even so do I reveal this universe. Therefore mine is all this universe, or verily nothing is mine.
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?
If it is said that :
The consciousness (the individual) or the Consciousness (The Supreme);
that alone lets the body, the world and itself reveal as the self / Self (God) is the only, the Unique Reality that I am?
Is it not Wisdom?
Because, there is no more any distinction between I and mine. Either everything is I and mine, or nothing is I and mine.
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