Friday, 18 November 2022

यथैवेक्षुरसेक्लृप्ता

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक ६

यथैवेक्षुरसेक्लृप्ता तेन व्याप्तैव शर्करा।।

तथा विश्वं मयि क्लृप्तं मया व्याप्तं निरन्तरं।।६।।

अर्थ :

ईख के रस से निकाली जानेवाली शर्करा उस रस में जैसे भीतर और बाहर व्याप्त होती है, उसी प्रकार से मैं, मुझमें उत्पन्न होने वाले विश्व में पूरी तरह से निरन्तर भीतर-बाहर व्याप्त हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೬

ಯಥೈವೇಕ್ಷುರಸೇಕ್ಲೃಪ್ಚಾ

ತೇಲ ವ್ಯಾಪ್ತೈವ ಶರ್ಕರಾ ||

ತಥಾ ವಿಶ್ವಂ ಮಯಿ ಕ್ಲೃಪ್ತಂ

ಮಯಾ ವ್ಯಾಪ್ತಂ ಲಿರಲ್ತರಂ||೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 2

Stanza 6

Just as sugar generated in sugarcane-juice is wholly pervaded by it (in the juice), even so, the universe produced in Me, is permeated by Me, through and through.

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