अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक ६
यथैवेक्षुरसेक्लृप्ता तेन व्याप्तैव शर्करा।।
तथा विश्वं मयि क्लृप्तं मया व्याप्तं निरन्तरं।।६।।
अर्थ :
ईख के रस से निकाली जानेवाली शर्करा उस रस में जैसे भीतर और बाहर व्याप्त होती है, उसी प्रकार से मैं, मुझमें उत्पन्न होने वाले विश्व में पूरी तरह से निरन्तर भीतर-बाहर व्याप्त हूँ।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೨
ಶ್ಲೋಕ ೬
ಯಥೈವೇಕ್ಷುರಸೇಕ್ಲೃಪ್ಚಾ
ತೇಲ ವ್ಯಾಪ್ತೈವ ಶರ್ಕರಾ ||
ತಥಾ ವಿಶ್ವಂ ಮಯಿ ಕ್ಲೃಪ್ತಂ
ಮಯಾ ವ್ಯಾಪ್ತಂ ಲಿರಲ್ತರಂ||೬||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 6
Just as sugar generated in sugarcane-juice is wholly pervaded by it (in the juice), even so, the universe produced in Me, is permeated by Me, through and through.
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