Sunday, 13 November 2022

अथ द्वितीयोऽध्यायः

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक १

जनक उवाच --

अहो निरञ्जनो शान्तो बोधोऽहं प्रकृतेः परः।।

एतावन्तमहंकालं मोहेनैव विडम्बितः।।१।।

अर्थ :

जनक ने कहा --

अरे! मैं तो अविकारी, निष्कलंक, शान्त, बोधमात्र और प्रकृति (विकार) से अत्यन्त रहित, विलक्षण और अन्य हूँ।  इसलिए यह विडम्बना है कि काल से मोहित हो जाने के कारण मुझे अपनी गरिमा का विस्मरण हो गया है। 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೧

ಅಹೋ ನಿರಞ್ಜಲಃ ಶಾನ್ತೇ ಬೋಧೋऽಹಂ ಪ್ಕೃತೇಃ ಪರಃ ||

ಏತಾವನ್ತಮಹಂ ಕಾಲಂ ಮೋಹೇನೈವ ವಿಡಮ್ಬಿತಃ ||೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 2

Stanza 1

Janaka said :

O! (Though) I am spotless, tranquil, pure consciousness and beyond nature. All this  time I have been mocked by illusion.

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