Thursday, 17 November 2022

यथा न तोयतो भिन्नास्तरङ्गाः

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक ४

यथा न तोयतो भिन्नास्तरङ्गाः फेनबुद्बुदाः।।

आत्मनो न तथा भिन्नं विश्वमात्मविनिर्गतम्।।४।।

अर्थ :

जिस प्रकार तरंगें, फेन और बुलबुले, पानी से (भिन्न प्रतीत होते हुए भी) भिन्न और कुछ नहीं होते, उसी प्रकार से, आत्मा से ही उद्भूत यह विश्व भी (आत्मा से भिन्न प्रतीत होते हुए भी) केवल और केवल आत्मा ही है।

--

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಅಧ್ಯಯನ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಯಥಾ ನ ತೋಯತೋ ಭಿನ್ನಾಸ್ತ-

ರಙ್ಗಃಫೇಏನಬುದ್ಬುದಾಃ||

ಆತ್ಮನೋ ನ ತಥಾಭಿನ್ನಂ

ವಿಶ್ವಮಾತ್ಮವಿನಿರ್ಗತಮ್||೪||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 2

Stanza 4

As wave, foam and bubbles are not different from water, even so the universe emanating from the Atman is not different from it.

***



No comments:

Post a Comment