Friday, 11 November 2022

यथैवादर्शमध्यस्थे

अष्टावक्र गीता

अध्याय १

श्लोक १८

यथैवादर्शमध्यस्थे रूपेऽन्तःपरितस्तु सः।। 

तथैवास्मिन् शरीरेऽन्तःपरितः परमेश्वर।।१८।।

अर्थ :

जैसे दर्पण का अस्तित्व उसमें स्थित किसी प्रतिबिम्ब से भीतर और बाहर भी होता है, परमेश्वर भी इस शरीर में, इसी तरह से भीतर तथा बाहर भी  विद्यमान है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧

ಶ್ಲೋಕ ೧೮

ಯಥೈವಾದರ್ಶಮಧ್ಯಸ್ಥೇ ರೂಪೇऽನ್ತಃ ಪರಿತಸ್ತು ಸಃ||

ತಥೈವಾಸ್ಮಿನ್ ಶರೀರೇऽಲ್ತಃ ಪರಿತಃ ಪರಮೇಶ್ಶರಃ||೧೮||

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Ashtavakra Gita

Chapter 1

Stanza 18

Just as a mirror exists within and without the image reflected in it also, even so the Supreme Lord exists inside and outside this body.

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