अष्टावक्र गीता
अध्याय १
श्लोक १८
यथैवादर्शमध्यस्थे रूपेऽन्तःपरितस्तु सः।।
तथैवास्मिन् शरीरेऽन्तःपरितः परमेश्वर।।१८।।
अर्थ :
जैसे दर्पण का अस्तित्व उसमें स्थित किसी प्रतिबिम्ब से भीतर और बाहर भी होता है, परमेश्वर भी इस शरीर में, इसी तरह से भीतर तथा बाहर भी विद्यमान है।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧
ಶ್ಲೋಕ ೧೮
ಯಥೈವಾದರ್ಶಮಧ್ಯಸ್ಥೇ ರೂಪೇऽನ್ತಃ ಪರಿತಸ್ತು ಸಃ||
ತಥೈವಾಸ್ಮಿನ್ ಶರೀರೇऽಲ್ತಃ ಪರಿತಃ ಪರಮೇಶ್ಶರಃ||೧೮||
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Ashtavakra Gita
Chapter 1
Stanza 18
Just as a mirror exists within and without the image reflected in it also, even so the Supreme Lord exists inside and outside this body.
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