Thursday, 24 November 2022

अहो... एकोऽहं देहवानपि।

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक १२

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक १२

अहो अहं नमो मह्यमेकोऽहं देहवानपि।।

क्वचिन्न गन्ता नागन्ता व्याप्यविश्वमवस्थितः।।१२।।

अर्थ :

अहो! आत्मा की महिमा!  आत्मा को नमस्कार है! देह यद्यपि यत्र तत्र आती जाती है, आत्मा संपूर्ण विश्व में वयाप्त है, जो कि  देह में होते हुए भी देह से स्वतंत्र भी है, जो कहीं या आता नहीं!

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೧೨

ಅಹೋ ಅಹಂ ನಮೋ ಮಹ್ಯ-

ಮೇಹೋऽಹಂ ದೇಹವಾನಪಿ||

ಕ್ವತಿನ್ನ  ಗನ್ತಾ ನಾಗನ್ತಾ

ವ್ಯಾಪ್ಯವಿಶ್ವಮವಸ್ಥಿತಃ||೧೨||

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Ashtavakra Gita 

Chapter 2

Stanza 12

Wonderful am I! Adoration to Myself, Who, though with a body one, neither come from nor go to anywhere and abide pervading the universe.

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