Sunday 30 April 2023

इदं कृतं इदं नेति

अष्टावक्र गीता

अध्याय १६

श्लोक ५

इदं कृतं इदं नेति द्वन्द्वैर्मुक्तं यदा मनः।।

धर्मार्थकाममोक्षेषु निरपेक्षं तदा भवेत्।।५।।

(इदं कृतं इदं न - इति द्वन्द्वैः मुक्तं यदा मनः। धर्म - अर्थ - काम - मोक्षेषु निरपेक्षं तदा भवेत्।।)

अर्थ : जीवन के धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इन चार श्रेयस्कर पुरुषार्थों अर्थात् प्रयोजनों के संबंध में ' यह कर लिया है, और यह अभी नहीं किया है - करना है', इत्यादि द्वन्द्वों से मन जैसे ही मुक्त हो जाता है वैसे ही वास्तविक रूप से निरपेक्ष (उदासीन और स्थितप्रज्ञ) हो जाता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬

ಶ್ಲೋಕ ೫

ಇದಂ ಕೃತಮಿದಂ ನೇತಿ

ದ್ವನ್ದ್ವೈರ್ಮುಕ್ತಂ ಯದಾ ಮನಃ||

ಧರ್ಮಾರ್ಥಕಾಮಮೋಕ್ಷೇಷು

ನಿರಪೇಕ್ಷಂ ತಥಾ ಭವೇತ್||೫||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 5

When the mind is free from such pairs of opposites as "this is done" and "this is not done" it becomes indifferent to religious merit (धर्म / Dharma), worldly prosperity (अर्थ / artha), desire of sensual enjoyment (काम / kAma) and of liberation (मोक्ष / mokSha).

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Saturday 29 April 2023

व्यापारे खिद्यते यस्तु

अष्टावक्र गीता

अध्याय १६

श्लोक ४

व्यापारे खिद्यते यस्तु निमेषोन्मेषयोरपि।।

तस्यालस्यधुरीणस्य सुखं नान्यस्तस्य कस्यचित्।।४।।

(व्यापारे खिद्यते यः तु निमेष - उन्मेषयोः अपि। तस्य आलस्य - धुरीणस्य सुखं न अन्यस्य कस्यचित्।।)

नेत्र खोलने और बन्द करने का कार्य करने में भी जिसे आलस्य प्रतीत होता हो, ऐसा आलस्यपटु जिस सुख का अनुभव करता है, उसे वही जानता है, अन्य कोई नहीं।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬

ಶ್ಲೋಕ ೪

ವ್ಯಾಪಾರೇ ಖಿದ್ಯತೇ ಯಸ್ತು ನಿಮೇಷೋನ್ಮೇಷಯೋರಪಿ||

ತಸ್ಯಾಲಸ್ಯಧುರೀಣಸ್ಯ ಸುಖಂ ನಾನ್ಯಸ್ಕಕಸ್ಯಚಿತ್||೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 4

--  Happiness belongs to that master of indifference to whom even the closing and opening of the eyelids is an affliction, to none else.

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Friday 28 April 2023

आयासात्सकलो दुःखी

अष्टावक्र गीता 

अध्याय १६

श्लोक ३

आयासात्सकलो दुःखी नैनं जानाति कश्चन।।

अनेनैवोपदेशेन धन्यः प्राप्ननोति निर्वृतिम्।।३।।

(आयासात् सकलः दुःखी न एनं जानाति कश्चन। अनेन एव उपदेशेन धन्यः प्राप्नोति निर्वृतिम्।।)

अर्थ  : हर कोई, प्रत्येक ही दुःखी है, क्योंकि कोई भी यह नहीं जानता कि यत्न करना ही दुःख का कारण है। जबकि बिरला कोई धन्य है जो इसे जानकर शान्त और कृतकृत्य हो जाता है, उसके लिए  कुछ करने या न करने का प्रश्न ही समाप्त हो जाता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಆಯಾಸಾತ್ಸಕಲೋ ದುಃಖೀ

ನೈನಂ ಜಾನಾತಿ ಕಶ್ಚನ||

ಅನೇನೈವೋಪದೇಶೇನ

ದನ್ಯಃ ಪ್ರಾಪ್ನೋತಿ ನಿರ್ವೃತಿಂ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 3

All are unhappy because they exert them-selves. And one knows this (secret). But The Blessed one attains emancipation through this very instruction.

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Thursday 27 April 2023

भोगं कर्म समाधिं वा

अष्टावक्र गीता

अध्याय १६

श्लोक २

भोगं कर्म समाधिं वा कुरु विज्ञ तथापि ते।।

चित्तं निरस्त सर्वाशमत्यर्थं रोचयिष्यति।।२।।

(भोगं कर्म समाधिं वा कुरु विज्ञ तथापि ते। चित्तं निरस्त-सर्वाशं अत्यर्थं रोचयिष्यति।।)

अर्थ : हे विज्ञ! तुम भोग, कर्म या समाधि का अभ्यास करो, उसे जानो, और चित्त से इन सबको अत्यन्त और पूरी तरह से निरस्त भी कर दो, तथापि उसे प्राप्त कर लेने की उत्कंठा तुम्हें तब तक उसकी ओर अवश्य ही आकर्षित करती रहेगी, जो कि समस्त विषयों से परे है, और जिसमें समस्त इच्छाएँ विलीन हो जाती हैं।

[विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।।

रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।५९।।

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २]

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೬

ಶ್ಲೋಕ ೨

ಭೋಗಂ ಕರ್ಮ ಸಮಾಧಿಂ ವಾ

ಕುರು ವಿಜ್ಞಾನ ತಥಾಪಿ ತೇ||

ಚಿತ್ತಂ ನಿರಸ್ತ ಸರ್ವಾಶ-

ಮತ್ಯರ್ದಂ ರೋಚಯಿಷ್ಯತಿ||೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 2

O Sage! You may enjoy or work, or practice mental concentration. But your mind will still yearn for That which is beyond all objects and in which all desires are extinguished.

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षोडषाध्यायः

अष्टावक्र गीता

षोडषाध्यायः

श्लोक १

अष्टावक्र उवाच --

आचक्ष्व शृणु वा तात नानाशास्त्राण्यनेकशः।।

तथापि न तव स्वास्थ्यं सर्वविस्मरणादृते।।१।।

(आचक्ष्व शृणु वा तात नाना शास्त्राणि अनेकशः। तथापि तव न स्वास्थ्यं सर्वविस्मरणाद् ऋते।।)

अर्थ  : अष्टावक्र बोले --

हे तात, तुम अनेक शास्त्रों को अनेक प्रकार से कितना ही कहो या सुनो, तो भी जब तक उन सबको पूरी तरह से विस्मृत न कर दो, तब तक तुम्हारा चित्त स्वस्थ न हो सकेगा।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಷೋಡಾಧ್ಯಾಯಃ

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ --

ಆಚಕ್ಷ್ವ ಶೃಣು ವಾ ತಾತ ನಾನಾಶಾಸ್ತ್ರಾಣ್ಯನೇಕಶಃ||

ತಥಾಪಿ ನ ತವ ಸ್ವಾಸ್ಥ್ಯಂ ಸರ್ವವಿಸ್ಮರಣಾದೃತೇ||೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 16

Stanza 1

Ashtavakra said --

My Child, you may often speak upon various scriptures or hear them. But you cannot be established in the Self unless you forget all.

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Emptying the mind!  of all known!

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Monday 24 April 2023

त्यजैव ध्यानं सर्वत्र

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक २०

त्यजैव ध्यानं सर्वत्र मा किञ्चिद्धृदि धारय।।

आत्मा त्वं मुक्त एवासि किं विमृश्य करिष्यसि।।२०।।

(त्यज एव ध्यानं सर्वत्र मा किञ्चित् हृदि धारय। आत्मा त्वं मुक्तः एव असि किं विमृश्य करिष्यसि।।)

अर्थ : सर्वत्र ही और विषय-मात्र से ही ध्यान हटाओ, कुछ भी, और किसी भी विषय को हृदय में धारण ही न करो। तुम आत्मा और मुक्त ही हो विषयों का चिन्तन और विमर्श आदि करने से तुम्हें क्या प्राप्त होनेवाला है?

।।इति पञ्चदशाध्यायः।। 

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २ : यह सन्दर्भ दृष्टव्य है :

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।।

सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।६२।।

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः।।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।६३।।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೨೦

ತ್ಯಜೈವ ಧ್ಯಾನಂ ಸರ್ವತ್ರ ಮಾ ಕಿಞ್ಚಿದ್ಧೃದಿ ಧಾರಯ ||

ಆತ್ಮಾ ತ್ವಂ ಮುಕ್ತ ಏವಾಸಿ ಕಿಂ ವಿಮೃಶ್ಯ ಕರಿಶ್ಯಸಿ||೨೦||

||ಇತಿ ಪಞ್ಚದಶಾಧ್ಯಾಯಃ||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 20

Give up contemplating anything and hold nothing into your heart. You are verily the Self and therefore free. What will you do by thinking?

(Emptying of the mind?) 

Thus concludes chapter 15 of the text :

Ashtavakra Gita .

Sunday 23 April 2023

मा सङ्कल्पविकल्पाभ्यां

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १९

मा सङ्कल्पविकल्पाभ्यां चित्तं क्षोभय चिन्मय।।

उपशाम्य सुखं तिष्ठ स्वात्मन्यानन्दविग्रहे।।१९।।

(मा सङ्कल्पविकल्पाभ्यां चित्तं क्षोभय चिन्मय। उपशाम्य सुखं तिष्ठ स्वात्मनि आनन्दविग्रहे।।)

अर्थ :

हे चिन्मय! संकल्पों विकल्पों आदि से चित्त को क्षुब्ध मत करो। संकल्पों और विकल्पों का शमन कर, अपनी निज नित्य आत्मा के आनन्दमय स्वरूप में सुखपूर्वक सदा स्थित हो रहो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೯

ಮಾ ಸಙ್ಕಲ್ಪವಿಕಲ್ಪಾಭ್ಯಾಂ ಚಿತ್ತಂ ಕ್ಷೋಭಯ ಚಿನ್ಮಯ||

ಉಪಶಾಮ್ಯ ಸುಖಂ ತಿಷ್ಠ ಸ್ವಾತ್ಮನ್ಯಾನನ್ದ ವಿಗ್ರಹೆ||೧೯||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 19

O Pure Intelligence, do not disturb your mind with decisions and indecisions. Be calm and abide happily in your own self which is Bliss itself.

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Saturday 22 April 2023

एक एव भवाम्भोधावासीदस्ति

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १८

एक एव भवाम्भोधावासीदस्ति भविष्यति।।

न ते बन्धोऽस्ति मोक्षो वा कृतकृत्यः सुखं चर।।१८।।

(एकः एव भवाम्भोधौ आसीत् अस्ति भविष्यति। न ते बन्धः अस्ति न मोक्षः वा कृतकृत्यः सुखं चर।।)

अर्थ : (जो तुम हो,) संसाररूपी महासागर में एकमात्र (चैतन्य) ही था, है और होगा। तुम कृतकृत्य (धन्य) हो, तुम्हारे लिए न तो बन्धन, अथवा न मोक्ष ही है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೮

ಏಕ ಏವ ಭವಾಮ್ಭೋಧಾ-

ವಾಸೀದಸ್ತಿ ಭವಿಷ್ಯತಿ||

ನ ತೇ ಬನ್ಧೋऽಸ್ತಿ ಮೋಕ್ಷೋ

ಕೃತಕೃತ್ವಾಯಃ ಸುಖಂ ಚರ||೧೮||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 18 

In the ocean of the world, only one (you alone, the Intelligence) was,  is and will be. You have no bondage nor liberation. Live contented and happy.

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Friday 21 April 2023

भ्रान्तिमात्रमिदं विश्वं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १७

भ्रान्तिमात्रमिदं विश्वं न किञ्चिदिति निश्चयी।।

निर्वासनः स्फूर्तिमात्रो न किञ्चिदवशाम्यति।।१७।।

(भ्रान्तिमात्रं इदं विश्वं न किञ्चित् इति निश्चयी। निर्वासनः स्फूर्तिमात्रः न किञ्चित् अवशाम्यति।।)

अर्थ : जिसे निश्चय हो जाता है कि यह विश्व क्षणिक आवेश ही है, वह कामनारहित हो जाता है, उसके लिए यह विश्व विलीन होकर मानों शान्त हो जाता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ1ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೭

ಭ್ರಾನ್ತಿಮಾತ್ರಮಿದಂ ವಿಶ್ವಂ

ನ ಕಿಞ್ಚಿದಿತಿ ನಿಶ್ಚಯೀ||

ನಿರ್ವಾಹನಃ ಸ್ಫುರ್ತಿಮಾತ್ರೋ

ನ ಕಿಞ್ಚಿದವಶಾಮ್ಯತಿ||೧೭||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 17

One who knows for certain that this universe is but an illusion and a nothing, becomes desireless and pure Intelligence, and finds peace as if nothing exists. 

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Thursday 20 April 2023

तवैवाज्ञानतो विश्वं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १६

तवैवाज्ञानतो विश्वं त्वमेकः परमार्थतः।।

त्वत्तोऽन्यो नास्ति संसारी नासंसारी च कश्चन।।१६।।

(तव एव अज्ञानतः विश्वं त्वमेकः परमार्थतः। त्वत्तः अन्यः न अस्ति संसारी न असंसारी च कश्चन।।)

अर्थ : (तुम्हारे ही) अज्ञान से ही तुम्हारा विश्व तुम्हें प्रतीत होता है, परमार्थतः तो केवल एक तुम हो। तुमसे अन्य कोई और नहीं है, जो कि संसारी या असंसारी हो।

उक्त श्लोक के अंग्रेजी अनुवाद में 'संसारी' को 'जीव' के अर्थ में और 'असंसारी' को 'ईश्वर' के अर्थ में ग्रहण किया गया है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೬

ತವೈವಾಜ್ಞಾನತೋ ವಿಶ್ವಂ

ತ್ವಮೇಕಃ ಪರಮಾರ್ಥತಃ||

ತ್ವತ್ತೋऽನ್ಯೋ ನಾಸ್ತಿ ಸಂಸಾರೀ

ನಾಸಂಸಾರೀ ಕಶ್ಚನ||೧೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 16

It is verily through your ignorance that the universe exists. In reality you alone are. There is no Jiva or Ishwara other than you.

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Wednesday 19 April 2023

अयं सोहमयं नाहं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १५

अयं सोहमयं नाहं विभागमिति सन्त्यज।।

सर्वमात्मेति निश्चित्य निःसंकल्पः सुखी भव।।१५।।

(अयं सः, अहं अयं न, अहं विभागं इति सन्त्यज। सर्वं आत्मा इति निश्चित्य निःसंकल्पः सुखी भव।।)

अर्थ : यह 'वह' है, यह मैं नहीं, अयं और अहं के बीच इस प्रकार से होनेवाले विभाजन को पूरी तरह से त्याग दो। सब आत्मा ही है इसका निश्चय कर लो, और संकल्परहित हो सुखी हो जाओ।

(मूल अंग्रेजी अनुवाद* में 'वह' का अर्थ He / परमात्मा या ब्रह्म किया गया है, ऐसा जान पड़ता है।) 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೫

ಅಯಂ ಸೋಹಮಯಂ ನಾಹಂ ವಿಭಾಗಮಿತಿ ಸನ್ತ್ಯಜ||

ಸರ್ವಮಾತ್ಮೇತಿ ನಿಶ್ಚಿತ್ಯ ನಿಃಸಂಕಲ್ಪಃ ಸುಖೀ ಭವ||೧೫||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 15

Completely give up such distinctions as 'I am * He' and 'I am not this.' Consider all as the Self and be desireless and happy.

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यस्त्वं पश्यसि तत्रैकस्त्वमेव

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १४

यस्त्वं पश्यसि तत्रैकस्त्वमेव प्रतिभाससे।।

किं पृथक्भासते स्वर्णात्कटकङ्गदनूपुरम्।।१४।।

(यः त्वं पश्यसि तत्र एकः त्वं एव प्रतिभाससे। किं पृथक् भासते स्वर्णात् कटक -अङ्गद -नुपुरम्।।)

अर्थ : तुम जो कुछ भी, और जिसे भी देखते हो, स्वयं तुम्हारा अपना ही प्रतिभास (प्रतिबिम्ब) है। क्या स्वर्ण से निर्मित कटक -कंगन, अङ्गद - केयूर -भुजबन्ध, और नूपुर आदि का स्वर्ण से पृथक् और भिन्न अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो सकता है?

सद्दर्शनम् --

सत्यश्चिदात्मा विविधाकृतिश्चित् 

सिध्येत्पृथक्सत्यचितो न भिन्ना।।

भूषाविकाराः किमु सन्ति सत्यं

विना सुवर्णं पृथगत्र लोके||१३||

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೪

ಯಸ್ತ್ವಂ ಪಶ್ಯಸಿ ತತ್ರೈಕಸ್-

ತ್ವಮೇವ ಪ್ರತಿಭಾಸಸೇ||

ಕಿಂ ಪೃಥಕ್ ಭಾಸತೇ ಸ್ವರ್ಣಾತ್-

ಕಟಕಾಙ್ಗದನೂಪುರಮ್||೧೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 14

In whatever you perceive you alone appear. Do bracelets,  armletsand anklets appear different from gold!

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Superimposition : अध्यारोप --

जैसे स्वर्ण से बने आभूषण भिन्न भिन्न नामों और आकृतियों के होने पर भी स्वर्ण ही होते हैं, नाम-आकृतियाँ प्रातिभासिक, और स्वर्ण पर आरोपित होते हैं।

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एकस्मिन्नव्यये शान्ते

अष्टावक्र गीता
अध्याय १५
श्लोक १३
एकस्मिन्नव्यये शान्ते चिदाकाशेऽमले त्वयि।।
कुतो जन्म कुतः कर्म कुतोऽहङ्कार एव च।।
(एकस्मिन् अव्यये शान्ते चिदाकाशे अमले त्वयि। कुतः जन्म कुतः कर्म कुतः अहङ्कार एव च।।)
अर्थ : तुम जो कि द्वैत-रहित और एकमेव-अव्यय, शान्त, और निर्मल, चिदाकाश हो, उसमें, जन्म कैसे, कर्म, एवं अहंकार ही कैसे हो सकता है?
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫
ಶ್ಲೋಕ ೧೩
ಏಕಸ್ಮಿನ್ನವ್ಯಯೇ ಶಾನ್ತೇ
ಚಿದಾಕಾಶೇಮಲೇऽತ್ವಯಿ||
ಕುತೋ ಜನ್ಮ ಕುತಃ ಕರ್ಮ
ಕುತೋऽಹಂಕಾರ ಏವ ಚ||೧೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 15
Stanza 13
Where-from will there be birth, action, and even egoism for thee, who art one, immutable, calm, Intelligence itself, and pure!
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Tuesday 18 April 2023

तात चिन्मात्र रूपोऽसि

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १२

तात चिन्मात्र रूपोऽसि न ते भिन्नमिदं जगत्।।

अतः कस्य कथं कुत्र हेयोपादेयकल्पना।।१३।।

(तात! चिन्मात्र रूपः असि न ते भिन्नं इदं जगत्। अतः कस्य कथं कुत्र हेय-उपादेय कल्पना।।)

अर्थ : वत्स!  तुम केवल शुद्ध चैतन्य मात्र हो, और जगत् तुमसे भिन्न नहीं है, इसलिए कौन है जो, जिसके लिए, जहाँ कुछ हेय (त्याज्य) और उपादेय (ग्राह्य) है, कल्पना की जाना संभव है! 

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೨

ತಾತ ಚಿನ್ಮಾತ್ರ ರೂಪೋऽಸಿ ನ ತೇ ಭಿನ್ನಮಮಿದಂ ಜಗತ್ ||

ಅತಃ ಕಸ್ಯ ಕಥಂ ಕುತ್ರ ಹೇಯೋಪಾದೇಯಕಲ್ಪನಾ||೧೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 12

My Child, you are pure Intelligence itself, this universe is nothing different from you. Therefore who will accept or reject! And how and where he do so !

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त्वय्यनन्त महाम्भोधौ

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ११

त्वय्यनन्त महाम्भोधौ विश्ववीचिः स्वभावतः।।

उदेतु वाऽस्तमायातु न ते वृद्धिर्नवाक्षतिः।।१०।।

(त्वयि अनन्त महाम्भोधौ विश्ववीचिः स्वभावतः। उदेतु वा अस्तं आयातु न ते वृद्धिः न वा क्षतिः।।)

अर्थ : तुम महासमुद्र हो कि जिसमें स्वभाविक रूप से विश्वरूपी तरङ्ग उठा करती है। तरङ्गरूपी विश्व उदित हो अथवा अस्त हो, तुम्हारे लिए न तो वृद्धि होती है न क्षति।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೧

ತ್ವಯ್ಯನನ್ತ   ಮಹಾಮ್ಭೋಧೌ

ವಿಶ್ಶಶೀತಿಃ ಸ್ವಭಾವತಃ||

ಉತೇತು ವಾऽಸ್ತಮಾಯಾತು

ನ ತೇ ವೃದ1ಧಿರ್ನ ವಾ ಕ್ಷತಿಃ||೧೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 11

Let the waves of the universe rise or fall of their own accord in you who are the infinite Ocean. That means no gain or lose to you.

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Monday 17 April 2023

देहस्तिष्ठतु कल्पान्तं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १०

देहस्तिष्ठतु कल्पान्तं गच्छत्वद्यैव वा पुनः।।

क्व वृद्धिः क्व च वा हानिस्तवचिन्मात्ररूपिणः।।१०।।

(देहः तिष्ठतु कल्पान्तं गच्छतु अद्य एव वा पुनः। क्व वृद्धिः क्व च वा हानिः तव चिन्मात्र-रूपिणः।।)

अर्थ : शरीर कल्प के अन्त तक जीवित बना रहे या आज ही नष्ट हो जाए, तुम्हारे चिन्मात्र चैतन्य स्वरूप में कौन सी वृद्धि या हानि होगी?

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧೦

ದೇಹಸ್ತಿಷ್ಠತು ಕವ್ಪಾನ್ತಂ ಗಚ್ಛತ್ವದ್ಯೈವ ವಾ ಪುನಃ||

ಕ್ವ ವೃದ್ಧಿಃ ಕ್ವ ಚ ವಾ ಹಾನಿಸ್ತವ ಚಿನ್ಮಾತ್ರರೂಪಿಣಃ||೧೦||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 10

Let the body last to the end of Kalpa (cycle) or let it go even to-day. Where is there any increase or decrease in you who are pure Intelligence! 

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Sunday 16 April 2023

गुणैः संवेष्टितो देह

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ९

गुणैः संवेष्टितो देहस्तिष्ठत्यायाति याति च||

आत्मा न गन्ता नागन्ता किमेनमनुशोचसि||९||

(गुणैः संवेष्टितः देहः तिष्ठति आयाति याति च। आत्मा न गन्ता न आगन्ता किं एनं अनुशोचति।।)

अर्थ : (प्रकृति के तीनों) गुणों द्वारा संश्लिष्ट (ज्ञानेन्द्रियों आदि के माध्यम से) देह ही व्यक्त रूप लेकर विद्यमान, आती और जाती हुई प्रतीत होती है। आत्मा न तो जाती है और न आती है, इसके लिए क्यों व्यर्थ शोक करें!

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೯

ಗುಣೈಃ ಸಂವೇಷ್ಟಿತೋ ದೇಹಸ್ತಿಷ್ಠತ್ಯಾಯಾತಿ ಯಾತಿ ಚ||

ಆತ್ಮಾ ನ ಗನ್ತಾ ನಾಗನ್ತಾ ಕಿಮೇನಮನುಶೋಚಸಿ||೯||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza

The body bound up with the organs of senses comes stays and goes. The Self neither comes nor goes. Why do you then mourn it!

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Saturday 15 April 2023

श्रद्धस्व तात श्रद्धस्व

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ८

श्रद्धस्व तात श्रद्धस्व नात्र मोहं कुरुष्व भोः।।

ज्ञानस्वरूपो भगवानात्मा त्वं प्रकृतेः परे।।८।।

(श्रद्धस्व तात श्रद्धस्व न अत्र मोहं कुरुष्व भोः। ज्ञानस्वरूपः भगवान् आत्मा त्वं प्रकृतेः परे।।)

अर्थ : हे वत्स! श्रद्धा जागृत होने दो, श्रद्धा जागृत होने दो, अरे!  यहाँ मोह मत होने दो! तुम स्वयं प्रकृति से परे और भगवान् हो, तुम आत्मा हो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೮

ಶ್ರದ್ಧಸ್ವ ತಾತ ಶ್ರದ್ಧಸ್ವ

ನಾತ್ಯ ಮೋಹಂ ಕುರುಷ್ವ ಭೋಃ||

ಜ್ಞಾನಸ್ವರೂಪೋ ಭಗವಾನಾತ್ಮಾ

ತ್ವಂ ಪ್ರಕೃತೇಃ ಪರೇ ||೮||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 8

Have Trust! O Son! Have Trust! Never delude yourself in this (phenomenal / दृश्य). You are Knowledge (Intelligence) itself, you are the Lord, you are the Self, and you are superior to nature.

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विश्वं स्फुरति यत्रेदं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ७

विश्वं स्फुरति यत्रेदं तरङ्गा इव सागरे।।

तत्त्वमेव न सन्देहश्चिन्मूर्ते विज्वरो भव।।७।।

(विश्वं स्फुरति यत्रेदं इदं तरङ्गाः इव सागरे। तत् त्वं एव न सन्देहः चिन्मूर्ते विज्वरः भव।।) 

अर्थ : हे चिन्मूर्ते! सागर में जैसे तरङ्गें उठती हैं, वैसे ही इस विश्व रूपी तरङ्गें जिस सागर में उठती हैं, तुम वह सागर हो, इस बारे में सन्देह मत करो और ज्वर से रहित शान्ति में स्थित हो जाओ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೭

ವಿಶ್ವಂ ಸ್ಫುರತಿ ಯತ್ರೇದಂ ತರಙ್ಗಾ ಇವ ಸಾಗರೇ ||

ತತ್ತ್ವಮೇವ ನ ಸನ್ದೇಹಶ್ಚಿನ್ಮೇರ್ತೇ ವಿಜ್ವರೋ ಭವ||೭||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 7

O you Intelligence, you indeed are that in which the universe manifests it-self like waves on the ocean. Be you free from fever.

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Friday 14 April 2023

सर्वभूतेषु चात्मानं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ६

सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।।

विज्ञाय निरहंकारो निर्ममस्त्वं सुखी भव।।६।।

(सर्वभूतेषु च आत्मानं सर्वभूतानि च आत्मनि। विज्ञाय निरहंकारः निर्ममः त्वं सुखी भव।।)

अर्थ : समस्त भूतों में आत्मा अर्थात् स्वयं अपने आपको और समस्त भूतों को भी आत्मा अर्थात् स्वयं अपने आपमें विद्यमान जानते हुए तुम अहंकार से शून्य और "मेरे" अर्थात् ममत्व (की भावना) से रहित होकर सुखी हो जाओ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೬

ಸರ್ವಭೂತೇಷು ಚಾತ್ಮಾನಂ

ಸರ್ವಭೂತಾನಿ ಚಾತ್ಮನಿ||

ವಿಜ್ಞಾಯ ನಿರಹಂಕಾರೋ 

ನಿರ್ಮಮಸ್ತ್ವಂ ಸುಖೀ ಭವ||೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

stanza 6

Realizing the Self in all and all in the Self, free from egoism and free from the sense of 'mine,' be you happy.

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Thursday 13 April 2023

रागद्वेषौ मनो धर्मौ

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ५

रागद्वेषौ मनो धर्मौ न मनस्ते कदाचन।।

निर्विकल्पोऽसि बोधात्मा निर्विकारः सुखं चर।।५।।

(रागद्वेषौ मनः धर्मौ न मनः ते कदाचन। निर्विकल्पः असि बोधात्मा निर्विकारः सुखं चर।।)

अर्थ : राग और द्वेष मन के धर्म हैं, मन कदापि तुम्हारा नहीं।तुम निर्विकल्प बोधमात्र चिन्मात्र ओर निर्विकार आत्मा हो, सदा ही  इस प्रकार से सुखपूर्वक रहो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ರಾಗದ್ವೇಷೌ ಮನೋ ಧರ್ಮೋ

ನ ಮನಸ್ತೇ ಕದಾಚನ ||

ನಿರ್ಷಿಕಲ್ಪೋऽಸಿ ಬೋಧಾತ್ಮಾ

ನಿರ್ಷಿಕಾರಃ ಸುಖಂ ಚರ||೫||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 5

Attachment and abhorrence are attributes of the mind. The mind is never yours. You are free from conflict, Intelligence itself and changeless. Get along happily.

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Wednesday 12 April 2023

न त्वं देहो न ते देहो

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ४

न त्वं देहो न ते देहो भोक्ताकर्ता न वा भवान्।।

चिद्रूपोऽसि सदा साक्षी निरपेक्षः सुखं चर।।४।।

(न त्वं देहः न ते देहः भोक्ता-कर्ता न वा भवान्। चित् रूपः असि सदा साक्षी निरपेक्षः सुखं चर।।)

अर्थ : न तो तुम शरीर हो और न शरीर तुम्हारा है। और न ही तुम कर्ता-भोक्ता आदि हो, तुम तो केवल शुद्ध चित्-रूप, नित्य साक्षी निरपेक्ष हो, और इसे जानते हुए सदा ही सुखपूर्वक रहो।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೪

ನ ತ್ವಂ ದೇಹೋ ನ ತೇ ದೇಹೋ

ಭೋಕ್ತಾಕರ್ತಾ ನ ವಾ ಭವಾನ್||

ಚಿದ್ರೂಪೋऽಸಿ ಸದಾಸಾಕ್ಷೀ

ನಿರಪೇಕ್ಷಃ ಸುಖಂ ಚರ||೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 4

You are not the body, nor is the body yours, nor or you the doctor the enjoyer. You are Intelligence itself, the eternal witness and you are free, Get along happily.

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वाग्मिप्राज्ञमहोद्योगं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक ३

वाग्मिप्राज्ञमहोद्योगं जनं मूकजडालसम्।।

करोति तत्वबोधोऽयमतस्त्यक्तो बुभुक्षुभिः।।३।।

(वाग्मि-प्राज्ञ-महोद्योगं जनं मूक-जड-आलसम्। करोति तत्त्वबोधः अयं अतः त्यक्तः बुभुक्षुभिः।।)

अर्थ : तत्त्व का यह बोध किसी वाक्चतुर को भी मूक, ज्ञानी को मूढ और उद्योगशील को आलसी बना देता है इसलिए सांसारिक सुखों की लालसा रखनेवाले अभिलाषी इसे त्याग देते हैं।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೩

ವಾಗ್ಮಿಪ್ರಾಜ್ಞಮಹೋದ್ಯೋಗಂ

ಜನಂ ಮೂಕಜಡಾಲಸಮ್||

ಕರೋತಿ ತತ್ತ್ವಬೋಧೋऽಯ-

ಮತಸ್ತ್ಯಕ್ತೋ ಬುಭುಕ್ಷುಭಿಃ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 3

This knowledge of truth makes an eloquent, wise and active person mute, inert lazy and inactive. Hence it is shunned by those who want to enjoy the world.

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Monday 10 April 2023

मोक्षो विषयवैरस्यं

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक २

मोक्षो विषयवैरस्यं बन्धो वैषयिकोरसः।।

एतावदेव विज्ञानं यथेच्छसि तथा कुरु।।२।।

(मोक्षः विषय-वैरस्यं बन्धः वैषयिकः रसः। एतावत् एव विज्ञानं यथा-इच्छसि तथा कुरु।।)

अर्थ : विषयों के प्रति अरुचि होना ही मोक्ष है, विषयों के प्रति रुचि होना बन्धन। (अध्यात्म के तत्व का) संपूर्ण विज्ञान मात्र यहीं तक, इतना ही है, अब आगे जैसी भी तुम्हारी इच्छा।

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १८ का निम्नलिखित श्लोक कुछ इसी तरह का प्रतीत होता है --

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।।

विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।६३।।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೨

ಮೋಕ್ಷೋ ವಿಷಯಷೈರಸ್ಯಂ

ಬಂಧೋ ಪೈಯಯಿಕೋ ರಸಃ||

ಏತಾವದೇವ ವಿಜ್ಞಾನಂ

ಯಥೇಚ್ಛಸಿ ತಥಾ ಕುರು||೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 2

Distaste for sense-objects is liberation ; live for sense-objects is bondage. Such verily is Knowledge. Now do as you please.

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Sunday 9 April 2023

यथातथोपदेशेन

अष्टावक्र गीता

अध्याय १५

श्लोक १

अष्टावक्र उवाच --

यथातथोपदेशेन कृतार्थः सत्त्वबुद्धिमान्।।

आजीवमपि जिज्ञासुः परस्तत्र विमुह्यति।।१।।

(यथा-तथा-उपदेशेन कृतार्थः सत्त्वबुद्धिमान्। आजीवं अपि जिज्ञासुः परः तत्र विमुह्यति।।)

अर्थ : किसी शुद्धबुद्धियुक्त मनुष्य के लिए जैसा भी उपदेश उसे दिया जाता है, उसे विवेक सहित ग्रहण कर वह कृतार्थ / धन्य हो जाता है, जबकि दूसरा कोई मनुष्य जिसकी बुद्धि शुद्ध नहीं हुई है, जीवन भर उपदेश सुनते रहने पर और भी अधिक भ्रमित हो जाता है।

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ಪಞ್ಚದಶಾಧ್ಯಾಯಃ

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೫

ಶ್ಲೋಕ ೧

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ --

ಯಥಾತಥೋಪದೇಶೇನ ಕೃತಾರ್ಥಃ ಸತ್ತ್ವಬುದ್ಧಿಮಾನ್||

ಆಜೀವಮಪಿ ಜಿಜ್ಞಾಸುಃ ಪರಸ್ತತ್ರ ವಿಮುಹ್ಯತಿ||೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 15

Stanza 1

Ashtavakra said --

A man of pure intellect has his (life's) object fulfilled even by instruction casually imparted. The other is bewildered there after enquiring throughout the whole life.

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Saturday 8 April 2023

अन्तर्विकल्पशून्यस्य

अष्टावक्र गीता

अध्याय १४

श्लोक ४

अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिःस्वच्छन्दचारिणः।।

भ्रान्तस्येव दशास्तास्तास्तादृशा एव जानते।।४।।

(अन्तर्विकल्पशून्यस्य बहिः स्वच्छन्दचारिणः। भ्रान्तस्य इव दशा ताः ताः तादृशा एव जानते।।)

"ज्ञा" - उभयपदी धातु लट् लकार, बहुवचन आत्मनेपदी :

प्रथम पुरुष  जानीते (एकवचन) जानते (द्विवचन) जानते (बहु-वचन) -- वे जानते हैं।

अर्थ : ऐसे आत्मज्ञानी पुरुष जिनके हृदय संशय-विकल्परहित होते हैं, और बाह्य आचरण स्वच्छन्द, यद्यपि उनकी दशा भ्रान्त जैसी प्रतीत हो सकती है और उन्हें वे ही जानते हैं जो उस दशा को जानते हैं।

||इति चतुर्दशाध्यायः||

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೪

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಅನ್ತರ್ವಿಕಲ್ಪಶೂನ್ಯಸ್ಯ ಬಹಿಃಸ್ವಚ್ಛನ್ದಚಾರಿಣಃ||

ಭ್ರಾನ್ತಸ್ಯೇವ ದಶಾಸ್ತಾಸ್ತಾಸ್ತಾದೃಶಾ ಏವ ಜಾನತೇ||೪||

||ಇತಿ ಚತುರ್ದಶಾಧ್ಯಾಯಃ||

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Ashtavakra Gita

Chapter 14

Stanza 4

The different conditions of one who within is devoid of doubts but who without moves about at his own pleasure like a deluded person, can only be understood by those like him.

Thus concludes chapter 14 of the text :

Ashtavakra Gita. 

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Friday 7 April 2023

विज्ञाते साक्षिपुरुषे

अष्टावक्र गीता

अध्याय १४

श्लोक ३

विज्ञाते साक्षिपुरुषे परमात्मनि चेश्वरे।।

नैराश्येबन्धमोक्षे च न चिन्ता मुक्तये मम।।४।।

(विज्ञाते साक्षिपुरुषे परमात्मनि च ईश्वरे। नैराश्ये बन्धमोक्षे च न चिन्ता मुक्तये मम।।)

अर्थ : परमात्मा और ईश्वर, -साक्षिपुरुष को जान लिए जाने पर अब बन्धन और मोक्ष की आशा और निराशा से न तो मेरा कोई प्रयोजन, और न उसकी चिन्ता ही रह गई है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೪

ಶ್ಲೋಕ ೩

ವಿಜ್ಞಾತೇ ಸಾಕ್ವಿಪುರುವೇ

ಪರಮಾತ್ಮನಿ ಚೇಶ್ವರೇ ||

ನೈರಾಶ್ಯೇ ಬನ್ದಮೋಕ್ಷೇ ಚ

ನ ಚಿನ್ತಾ ಮುಕ್ತಯೇ ಮಮ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 14

Stanza 3

As I have realized the Supreme Self Who is the Witness and the Lord, and have lost all desire for bondage and liberation, I feel no anxiety for emancipation.

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Thursday 6 April 2023

क्व धनानि क्व मित्राणि

अष्टावक्र गीता

अध्याय १४

श्लोक २

क्व धनानि क्व मित्राणि क्व मे विषयदस्यवः।।

क्व शास्त्रं क्व च विज्ञानं यदा मे गलिता स्पृहा।।२।।

(क्व धनानि क्व मित्राणि क्व मे विषय-दस्यवः। क्व शास्त्रं क्व च विज्ञानं यदा मे गलिता स्पृहा।।)

अर्थ : अब, जब मेरी स्पृहा / कामना ही गलकर नष्ट हो चुकी है, तो इन धन-सम्पत्तियों, मित्रों, विभिन्न विषय-रूपी दस्युओं, और शास्त्रों एवं शास्त्रों के ज्ञान से भी, मुझे क्या प्रयोजन है!  

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೪

ಶ್ಲೋಕ ೨

ಕ್ವ ಧನಾನಿ ಕ್ವ ಮಿತ್ರಾಣಿ

ಕ್ವ ಮೇ ವಿಷಯಧಸ್ಯವಃ||

ಕ್ವ ಶಾಸ್ತ್ರಂ ಕ್ವ ಚ ವಿಜ್ಞಾನಂ

ಯದಾ ಮೇ ಗಲಿತಾ ಸ್ಪೃಹಾ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 14

Stanza 2

When my desire has melted away, where are my riches, where my friends and the robbers in the form of the sense-objects, and where are scripture and knowledge.

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चतुर्दशाध्याय

अष्टावक्र गीता

अध्याय १४

श्लोक १

जनक उवाच  --

प्रकृत्या शून्यचित्तोयः प्रमादाद्भाव भावनः।।

निद्रितो बोधित इव क्षीणसंसरिणो हि सः।।१।।

(प्रकृत्या शून्यचित्तः यः प्रमादात् भाव भावनः। निद्रितः बोधित इव क्षीणसंसरिणः हि सः।।)

अर्थ : वह जो स्वभाव से तो चित्त / चित्तवृत्ति से रहित है, प्रमाद (अनवधानता) के ही कारण कल्पनाएँ करता हुआ भावनाओं से युक्त प्रतीत होता है। जैसे कि सोए हुए मनुष्य से कुछ कहा जाने पर जैसे तैसे उसकी कोई प्रतिक्रिया होती है, इसी प्रकार उसका चित्त अत्यन्त दुर्बल होकर विषयों आदि में संचरित होता हुआ (मानो) भावों और भावकर्ता (विचार और विचारकर्ता) का रूप ग्रहण कर लेता है।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೪

ಶ್ಲೋಕ ೧

ಜನಕ ಉವಾಚ --

ಪ್ರಕೃತ್ಯಾ ಶೂನ್ಯಚಿತ್ತೋಯಃ ಪ್ರಮಾದಾತ್ಭಾವಭಾವನಃ||

ನಿದ್ರಿತೋ ಬೋಧಿತ ಇವ ಕ್ಷೀಣಸಂಸರಿಣೋ ಹಿ ಸಃ||೧||

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Ashtavakra Gita

Chapter 14

Stanza 1

Janaka said --

He has verily his worldly life exhausted, who has a mind emptied of (worldly) thoughts by nature spontaneously, who thinks of objects through inadvertence, and who is as it were awake though asleep.

(Effortless emptying of mind)

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Wednesday 5 April 2023

सुखादिरूपानियमम्

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक ७

सुखादिरूपानियमं भावेष्वालोक्य भूरिशः।।

शुभाशुभे विहायास्मादहमासे यथासुखम्।।७।।

(सुख आदिरूपा नियमं भावेषु आलोक्य भूरिशः। शुभ-अशुभे विहायास्मात् अहं आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : सुख-दुःख आदि भावनाएँ किस प्रकार सतत बदलती हैं, इसका पुनः पुनः अवलोकन करने के बाद मैंने शुभ और अशुभ दोनों को ही त्याग दिया और मैं सुखपूर्वक रहता हूँ।

||इति त्रयोदशाध्यायः||

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಶ್ಲೋಕ ೭

ಸುಖಾದಿರೂಪಾನಿಯಮಂ

ಭಾವೇಷ್ವಾಲೋಕ್ಯ ಭೂರಿಶಃ||

ಶುಭಾಶುವೇ ವಿಹಾಯಾಸ್ಮಾ-

ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೭||

||ಇತಿ ತ್ರಯೋದಶಾಧ್ಯಾಯಃ||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 7

Observing again and again the fluctuations of pleasures, etc., under different conditions, I have renounced good and evil and am happy. 

Thus concludes chapter 13 of the text :

Ashtavakra Gita.

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स्वपतो नास्ति मे हानिः

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक ६

स्वपतो नास्ति मे हानिः सिद्धिर्यत्नवतो न वा।।

नाशोल्लासौविहायास्मादहमासे यथासुखम्।।६।।

(स्वपतः न अस्ति मे हानिः सिद्धिः यत्नवतः न वा। नाश उल्लास विहायास्मात् अहं आसे यथासुखम्।।)

अर्थ  : न तो सुषुप्त होने से मुझे कोई हानि होती है, और न यत्न करने से कोई लाभ। इसलिए हानि-लाभ, के शोक या प्रसन्नता से रहित मैं नित्य और सदा ही सुखपूर्वक रहता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಸ್ವಪತೋ ನಾಸ್ತಿ ಮೇ ಹಾನಿಃ

ಸಿದ್ಧಿರ್ಯತ್ನವತೋ ನ ವಾ||

ನಾಶೋಲ್ಲಾಹೌವಿಹಾಯಾಸ್ಮಾ-

ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ||೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 6

By going to sleep I have no loss whatsoever, nor gain whatsoever by making efforts and keeping awake. By giving up thought of loss or gain, I stay in peace and bliss all the time.

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Tuesday 4 April 2023

अर्थानर्थौ न मे स्थित्वा

अष्टावक्र गीता

अध्याय१३

श्लोक ५

अर्थानर्थौ न मे स्थित्वा गत्या न शयनेन वा।।

तिष्ठन् गच्छन् स्वपन् तस्मादहमासे यथासुखम्।।५।।

(अर्थ-अनर्थौ न मे स्थित्वा गत्या न शयनेन वा। तिष्ठन् गच्छन् स्वपन् तस्मात् अहं आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : कहीं भी होने, रहने, आने या जाने या निद्रा में सो जाने से मुझे कोई भी प्रयोजन, लाभ या हानि नहीं है। इसलिए कहीं भी होने, आने या जाने, सुषुप्ति (या जागृत अवस्था) में भी मैं सदैव सुख-पूर्वक होता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಶ್ಲೋಕ ೫

ಅರ್ಥಾನರ್ಥೌ ನ ಮೇ ಸ್ಥಿತ್ವಾ

ಗತ್ಯಾ ನ ಶಯನೇನ ವಾ||

ತಿಷ್ಠನ್ ಗಚ್ಛನ್ ಸ್ವಪನ್ ತಸ್ಮಾ-

ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೫||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 5

No good or evil accrues to me by staying, going or sleeping. So I live happily whether I stay, go or sleep.

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Monday 3 April 2023

कर्मनैष्कर्म्यनिर्बन्धभावादेह

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक ४

कर्मनैष्कर्म्यनिर्बन्धभावादेहस्थयोगिनः।।

संयोगायोगविरहादहमासे यथासुखम्।।४।।

(कर्म-नैष्कर्म्य-निर्बन्ध-भावात् इहस्थ योगिनः। संयोग-अयोग विरहात् अहं आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : देहात्मभावना से युक्त होने पर योगी कर्म तथा नैष्कर्म्य आदि के विचार से बद्ध होते हैं । जबकि देह से अपनी बद्धता या भिन्नता अर्थात् संयोग या वियोग की भावना से रहित होने से, मैं नित्य स्वतन्त्र होकर सुखपूर्वक रहता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಶ್ಲೋಕ ೪

ಕರ್ಮನೈಷ್ಕರ್ಮ್ಯ ನಿರ್ಭಾಬನ್ಧ-

ಭಾವಾದೇಹಸ್ಥ ಯೋಗಿನಃ||

ಸಂಯೋಗಾಯೋಗ ವಿರಹಾ-

ದಹಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಮ್||೪||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 4

The yogis who are attached to the body insist upon action or inaction. Owing to the absence of association and dissociation, I live happily.

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Saturday 1 April 2023

कृतं किमपि नैव स्यात्

अष्टावक्र गीता

अध्याय १३

श्लोक ३

कृतं किमपि नैव स्यादिति सञ्चिन्त्य तत्त्वतः।।

यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वासे यथासुखम्।।३।।

(कृतं किं अपि न एव स्यात् इति सञ्चिन्त्य तत्त्वतः। यदा यत् कर्तुं आयाति तत् कृत्वा आसे यथासुखम्।।)

अर्थ : वस्तुतः तो कर्ममात्र घटित भर होता है, न तो किसी के द्वारा किया जाता है, न कर्म का कोई अपना स्वतंत्र अस्तित्व है, कर्म, असंख्य क्रियाओं का केवल सम्मिलित एक परिणाम मात्र होता है, इस प्रकार से कर्म के स्वरूप को तत्त्वतः समझते हुए जब जो कर्म कर्तव्य की भाँति प्राप्त होता है, मैं उसे करता हुआ सुखपूर्वक रहता हूँ।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧೩

ಶ್ಲೋಕ ೩

ಕೃತಂ ಕಿಮಪಿ ನೈವಸ್ಯಾ-

ದಿತಿ ಸಞ್ಚಿನ್ಚ್ಯ ತತ್ತ್ವತಃ||

ಯದಾ ಯತ್ಕರ್ತುಮಾಯಾತಿ

ತತ್ ಕೃತ್ಮಾಸೇ ಯಥಾಸುಖಂ||೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 13

Stanza 3 

Fully realizing that nothing whatsoever is really done by the Self, I do whatever presents itself to be done and live happily.

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