Wednesday 12 May 2021

पानी केरा बुदबुदा!

संत कबीर का यह वचन विख्यात ही है। 

बुदबुदा अर्थात् वह जो पानी में कहीं से उठता है और सतह पर आने तक दिखलाई देता रहता है। सतह को पार करते करते ही खो जाता है। अकसर हर मनुष्य का मन (मानस) इसी प्रकार सतत प्रलाप करता रहता है। शायद इसे ही virtual bubble कहा जाता है। 

एक पत्रकार कहती हैं कि मोदीजी अपने ही बनाए virtual bubble में जीते हैं! 

ऐसे ही एक दूसरी सिने तारिका कहती हैं कि मोदीजी को शासन करना नहीं आता। इस पर एक और सिने तारिका अपने ही बारे में कहती हैं कि उसे अभिनय करना नहीं आता। 

संत कबीर को भी शायद पद, पद्य या कविता लिखना नहीं आता। कुछ ऐसा लिखना, जो विवादास्पद बन जाए यह लेखकीय स्वतंत्रता हो सकती है लेकिन इससे यह तो नहीं कह सकते कि आपको लिखना आता है। 

मुझे तो संशय होता है कि कहीं संत कबीर ने उपरोक्त वक्तव्य अप्रत्यक्ष रूप से (श्रीरामचरित) मानस के रचयिता के बारे में तो नहीं दिया था! वैसे तो मुझे यह भी ठीक से नहीं पता, कि क्या ये दोनों संत समकालीन थे, या एक ही आयु के थे, या कि दूसरे से कितने छोटे या बड़े थे!

सुबह ही लिखे पोस्ट को डिस्कार्ड करने का सोच रहा था तभी एक न्यूज़ पढ़ने में आई --

"प्रधानमन्त्री गुलाबी चश्मे को उतारकर देखें..."

बक़ौल केरल (वायनाड) के सांसद!

तब सोचा इसे एक दो दिन बना रहने दूँ!

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