Wednesday 29 June 2022

वो भूली दासताँ...

गीत / 25-06-2022

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वो भूली दासताँ,

क्यूँ आती है याद!

वो छूट गए, जो रास्ते,

क्यों आते हैं याद!

जो आते थे कभी,

किन्हीं अनजान राहों से,

ले जाते थे हमें,

किन्हीं अनजान राहों पर,

ले जाते थे हमको,

एक अनजान मंज़िल तक,

वो मंज़िल, रास्ते, राहें, 

क्यूँ आते हैं फिर याद,

करें शिकवा भी हम किससे,

हम किससे, करें फ़रियाद!

वो भूली दासताँ,

क्यूँ आती है याद! 

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Wednesday 15 June 2022

ताजमहल

पिछले पोस्ट से आगे... 

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हालाँकि मैंने ताजमहल फिल्म को तो कभी नहीं देखा लेकिन उसका गीत :

"जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा, रोके जमाना..." बचपन से ही मुझे प्रिय रहा है।

जब "मुग़ले-आज़म" के गीत "ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद" को देख रहा था, तो मेरे मन में यह जानने की उत्सुकता तक नहीं हुई कि क्या सलीम को मृत्युदंड दिया गया या नहीं। उस वीडियो को अंत तक देखने का धैर्य मुझमें नहीं था। लेकिन फिर याद आया कि यदि सलीम को मृत्युदंड दिया गया होता तो क्या ताजमहल का और उस पर बनी फिल्म का निर्माण हो पाता? तब भारत का इतिहास कितना अलग होता? सोचता हूँ कि क्या इस फिल्म का निर्माण किए जाने के पीछे पृथ्वीराज कपूर का यही मक़सद रहा होगा कि लोग इस बारे में सोचें!? यह भी संभव है कि मैंने यहाँ तथ्यों को गड्ड-मड्ड कर दिया हो! फिर सोचता हूँ कि जब जीते-जी ही तथ्यों को ठीक से याद नहीं रखा जा सकता, तो इतिहास और उसके तथाकथित तथ्यों की प्रामाणिकता कितनी और कहाँ तक विश्वसनीय हो सकती है! लेकिन अब इतिहास और ऐतिहासिक महापुरुषों के बारे में कुछ लिखने से मुझे डर लगने लगा है। सोचता हूँ काश, यह डर सभी को लगने लगे! तब शायद धार्मिक, साम्प्रदायिक, झगड़ों से हम दूर रह सकेंगे। अदालतों का, पुलिस का, और प्रशासन का सिरदर्द भी कम होगा। लेकिन मेरे सोचने से क्या होगा। और जिनके सोचने से कुछ हो सकता है, उन्हें न तो सोचने का वक्त है, न दिलचस्पी है।

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Monday 13 June 2022

ज़िन्दाबाद, ज़िन्दाबाद!

ये मुहब्बत ज़िन्दाबाद! 

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मैंने मुग़ले-आजम फ़िल्म 1970 के बाद कभी देखी थी। आज किसी न्यूज़ चैनल पर देखा / सुना कि Way-an-ad के एक  जन-प्रतिनिधि सरकारी एजेन्सी के द्वारा समन का सम्मान प्राप्त होने के बाद जब जवाब देने के लिए एजेन्सी के दफ्तर में हाज़िर होने जा रहे थे, तो समर्थकों ने एक विशाल रैली-प्रदर्शन उनके पक्ष में समर्थन के लिए आयोजित किया।

न्यूज़-चैनल की रिपोर्ट के अनुसार इस आयोजन का थीम-सॉङ्ग यह था :

"ज़िन्दाबाद, जि़न्दाबाद ... "

रिपोर्ट के अनुसार किसी को लगा, कि इस गीत के रचयिता को इसके लिए प्रेरणा मुग़ले-आज़म फिल्म के उस गीत से प्राप्त हुई होगी, जिसे तब गाया गया है, जब सलीम को दण्ड दिया जाना तय हुआ था।

मुझे राजनीति की बारीकियाँ समझ में नहीं आती (वैसे भी किसे आती हैं!?) किन्तु इस गीत को चूँकि मैं बचपन में उत्साहपूर्वक गुनगनाता था इसलिए इसे फिर से एक बार सुनने की उत्सुकता मन में पैदा हुई। 

लेकिन बचपन में भी इसे गुनगुनाते हुए मुझे और एक गीत तुरंत ही याद आने लगता था, जिसके बोल भी एक तरह से इस गीत के भावों के समानार्थी हैं :

"हम यादों के दीप जलाएँ,

और आँसू के फूल चढ़ाएँ,

साँसों का हर तार कहे,

ये प्यार अमर है!

दिल एक मन्दिर है,

दिल एक मन्दिर है,

प्यार की जिसमें होती है पूजा,

ये प्रीतम का घर है!"

इसके तुरंत बाद मुझे याद आता था :

"ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद!" 

ये मुहब्बत ज़िन्दाबाद!

(दोनों गीतों के स्वर और लय मिलते-जुलते होंगे, इसलिए!?)

आज जब इसे समाचार को देखा / सुना तो अचानक याद आया! 

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Wednesday 8 June 2022

चित् और चित्त

प्रमाद और अनवधानता 

(Ignorance and In-attention)

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चित्तं चिद्विजानीयात् त-कार रहितं यदा।।

त-कार विषयाध्यासो, प्रमादो मृत्युस्तथा।।

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चित्त को चित् ही जानो, जब वह त-कार से रहित होता है। और यह विषयाध्यास ही त-कार, अर्थात् वह अनवधानता है, जो कि वस्तुतः मृत्युतुल्य है। 

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