Saturday, 31 December 2022

धीरस्तु भोज्यमानोऽपि

अष्टावक्र गीता

अध्याय ३

श्लोक ९

धीरस्तु भोज्यमानोऽपि पीड्यमानोऽपि सर्वदा।।

आत्मानं केवलं पश्यन् न तुष्यति न कुप्यति।।९।।

(धीरः तु भोज्यमानः अपि पीड्यमानः अपि सर्वदा। आत्मानं केवलं पश्यन् न तुष्यति न कुप्यति।।)

अर्थ : परन्तु धीर पुरुष न तो अनुकूल सेवा और उपहार इत्यादि के प्राप्त होने पर हर्षित होता है और न ही प्रतिकूल पीडा आदि के प्राप्त होने पर उद्विग्न या कुपित होता है।

§ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ५ :

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्।।

स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः।।२०।।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೩

ಶ್ಲೋಕ ೯

ಧೀರಸ್ತು ಭೋಜ್ಯಮಾನೋऽಪಿ

ಪೀಡ್ಯಮಾನೋऽಪಿ ಸರ್ವದಾ||

ಆತ್ಮಾನಂ ಕೇವಲಂ ಪಶ್ಯನ್

ನ ತುಷ್ಯತಿ ನ ಕುಪ್ಯತಿ||೯||

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Ashtavakra Gita

Chapter 3

Stanza 9

But feted and feasted or tormented, the serene ever see the absolute Self and is thus neither gratified nor angry.

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