अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक २२
नाहं देहो न मे देहो जीवो नाहमहं हि चित्।।
अयमेव हि मे बन्ध आसीत् या जीविते स्पृहा।।२२।।
अर्थ :
न मैं देह हूँ, न देह मेरा है, न मैं जीव हूँ, मैं चित् हूँ। मेरा एकमात्र बन्धन यही था कि जीवन के प्रति लालसा थी।
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ४ के श्लोक १४ तथा अध्याय १४ के श्लोक १२ को स्पृहा शब्द के संदर्भ में उपरोक्त श्लोक को समझें तो शायद कुछ सहायता होगी --
अध्याय ४
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।१४।।
अध्याय १४
लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।।
राजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।।१२।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೨
ಶ್ಲೋಕ ೨೨
ನಾಹಂ ದೇಹೋ ಜೀವೋ
ನಾಹಮಹಂ ಹಿ ಚಿತ್||
ಅಯಮೇವ ಹಿ ಮೇ ಬನ್ದ
ಆಸೀದ್ಯಾ ಜೀವಿತೇಸ್ಪೃಹಾ||೨೨||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 22
Neither am I this body, nor is the body mine. I am not Jiva (self) I am Chit (Chaitanya Self). This indeed was my bondage that I had thirst for life.
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