Monday, 19 December 2022

नाहं देहो न मे देहो

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक २२

नाहं देहो न मे देहो जीवो नाहमहं हि चित्।।

अयमेव हि मे बन्ध आसीत् या जीविते स्पृहा।।२२।।

अर्थ :

न मैं देह हूँ, न देह मेरा है, न मैं जीव हूँ, मैं चित् हूँ। मेरा एकमात्र बन्धन यही था कि जीवन के प्रति लालसा थी। 

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ४ के श्लोक १४ तथा अध्याय १४ के श्लोक १२ को स्पृहा शब्द के संदर्भ में उपरोक्त श्लोक को समझें तो शायद कुछ सहायता होगी --

अध्याय ४

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।।

इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।१४।।

अध्याय १४

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।।

राजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।।१२।।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೨೨

ನಾಹಂ ದೇಹೋ ಜೀವೋ

ನಾಹಮಹಂ ಹಿ ಚಿತ್||

ಅಯಮೇವ ಹಿ ಮೇ ಬನ್ದ

ಆಸೀದ್ಯಾ ಜೀವಿತೇಸ್ಪೃಹಾ||೨೨||

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Ashtavakra Gita

Chapter 2

Stanza 22

Neither am I this body, nor is the body mine. I am not Jiva (self) I am Chit (Chaitanya Self). This indeed was my bondage that I had thirst for life.

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