अष्टावक्र गीता
अध्याय ३
श्लोक ८
इहामुत्रविरक्तस्य नित्यानित्यविवेकिनः।।
आश्चर्यं मोक्षकामस्य मोक्षादेव विभीषिका।।८।।
(इह-अमुत्र विरक्तस्य नित्य-अनित्य-विवेकिनः। आश्चर्यं मोक्षकामस्य मोक्षात् एव विभीषिका।।)
अर्थ : यह भी आश्चर्य ही है कि जिसे इस लोक के और इसके बाद के भी समस्त लोकों के सारे पदार्थों से अत्यन्त वैराग्य हो चुका है, और नित्य तथा अनित्य के विवेक की प्राप्ति हो चुकी है, वह मोक्ष-प्राप्ति की कामना और चिन्ता रूपी विभीषिका से ग्रस्त या त्रस्त हो!
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ಅಷಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೩
ಶ್ಲೋಕ ೮
ಇಹಾಮುತ್ರವಿರಕ್ತಸ್ಯ
ನಿತ್ಯಾನಿತ್ಯವಿವೇಕಿನಃ||
ಆಶ್ಚರ್ಯಂ ಮೇಕ್ಷಕಾಮಸ್ಯ
ಮೇಕ್ಷಾದೇವ ವಿಭೀಷೀಕಾ ||೮||
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Ashtavakra Gita
Chapter 3
Stanza 8
It is strange that one who is unattached to the objects of this world and the next, who discriminates the eternal from the non- eternal, and who longs for emancipation, should fear emancipation itself.
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