अष्टावक्र गीता
अध्याय २
श्लोक २३
अहो भुवनकल्लोलैर्विचित्रैर्द्राक्समुत्थितम्।।
मय्यनन्तमहाम्भोधौ चित्तवाते समुद्यते।।२३।।
अर्थ :
अरे! मुझ असीम महासमुद्र में, चित्त और वात, चेतना के और प्राणों के उद्यत और सक्रिय होने से ही विश्वरूपी असंख्य तरंगें निरंतर उठती और विलीन होती रहती हैं।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೨
ಶ್ಲೋಕ ೨೩
ಅಹೋ ಭುವನಕಲ್ಲೋಲೈರ್ರ್ವಿ-
ಚಿಚಿತ್ರೈರ್ದ್ರಾಕ್ಸಮುತ್ಥಿತಮ್||
ಮಯ್ಯನನ್ತಮಹಾಮ್ಭೋಧೌ
ಚಿತ್ತವಾತೇ ಸಮುದ್ಯತೇ||೨೩||
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Ashtavakra Gita
Chapter 2
Stanza 23
Oh! in Me, the limitless ocean, diverse waves of worlds are produced forthwith on the rising of wind of the mind.
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