Tuesday, 20 December 2022

अहो भुवनकल्लोलै

अष्टावक्र गीता

अध्याय २

श्लोक २३

अहो भुवनकल्लोलैर्विचित्रैर्द्राक्समुत्थितम्।।

मय्यनन्तमहाम्भोधौ चित्तवाते समुद्यते।।२३।।

अर्थ :

अरे! मुझ असीम महासमुद्र में, चित्त और वात, चेतना के और प्राणों के उद्यत और सक्रिय होने से ही विश्वरूपी असंख्य तरंगें  निरंतर उठती और विलीन होती रहती हैं।

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೨

ಶ್ಲೋಕ ೨೩

ಅಹೋ ಭುವನಕಲ್ಲೋಲೈರ್ರ್ವಿ-

ಚಿಚಿತ್ರೈರ್ದ್ರಾಕ್ಸಮುತ್ಥಿತಮ್||

ಮಯ್ಯನನ್ತಮಹಾಮ್ಭೋಧೌ

ಚಿತ್ತವಾತೇ ಸಮುದ್ಯತೇ||೨೩||

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Ashtavakra Gita

Chapter 2

Stanza 23

Oh! in Me, the limitless ocean, diverse waves of worlds are produced forthwith on the rising of wind of the mind. 

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