अष्टावक्र गीता
अध्याय ३
श्लोक ६
आस्थितं परमाद्वैतं मोक्षार्थेऽपि व्यवस्थितः।।
आश्चर्यं कामवशगो विकलः केलिशिक्षया।।६।।
अर्थ : यह आश्चर्य ही है कि कोई परम अद्वैत में प्रतिष्ठित रहते हुए भी और मोक्षप्राप्ति के लिए तत्पर और सुव्यवस्थित होकर भी कामविह्वल होकर शृङ्गार-भावना में पूरी तरह निमग्न हो!
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅನ್ಯಾಯ ೩
ಶ್ಲೋಕ ೬
ಆಸ್ಥಿತಃ ಪರಮಾದ್ವೈತಂ ಮೋಕ್ಷಾರ್ಥೇऽಪಿ ವ್ಯವಸ್ಥಿತಃ||
ಆಶ್ಚರ್ಯಂ ಕಾಮವಶಗೋ ವಿಕಲಃ ಕೆಲಿಶಿಕ್ಷಯಾ ||೬||
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Ashtavakra Gita
Chapter 3
Stanza 6
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Strange indeed! Abiding in the Supreme non-duality and intent on liberation, one should yet be subject to lust and be unsettled by the practice of amorous pastimes!
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