Wednesday, 28 December 2022

आस्थितं परमाद्वैतम्

अष्टावक्र गीता

अध्याय ३

श्लोक ६

आस्थितं परमाद्वैतं मोक्षार्थेऽपि व्यवस्थितः।।

आश्चर्यं कामवशगो विकलः केलिशिक्षया।।६।।

अर्थ : यह आश्चर्य ही है कि कोई परम अद्वैत में प्रतिष्ठित रहते हुए भी और मोक्षप्राप्ति के लिए तत्पर और सुव्यवस्थित होकर भी कामविह्वल होकर शृङ्गार-भावना में पूरी तरह निमग्न हो!

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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ 

ಅನ್ಯಾಯ ೩

ಶ್ಲೋಕ ೬

ಆಸ್ಥಿತಃ ಪರಮಾದ್ವೈತಂ ಮೋಕ್ಷಾರ್ಥೇऽಪಿ ವ್ಯವಸ್ಥಿತಃ||

ಆಶ್ಚರ್ಯಂ ಕಾಮವಶಗೋ ವಿಕಲಃ ಕೆಲಿಶಿಕ್ಷಯಾ ||೬||

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Ashtavakra Gita

Chapter 3

Stanza 6

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Strange indeed! Abiding in the Supreme non-duality and intent on liberation, one should yet be subject to lust and be unsettled by the practice of amorous pastimes!

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