Monday, 9 November 2015

'π' का मान / value of 'π'

π का 'मान / value of 'π'   
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सरलता और कुटिलता 
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कक्षा नौ में पढ़ते समय गणित के एक प्रश्न में ’पाई’/ 'π'   अर्थात् वृत्त के व्यास और उसकी परिधि के अनुपात का मान निकालना होता था । हमें ’परिकार’ अर्थात् ’कंपास’ से भिन्न-भिन्न नाप की रेडियस (त्रिज्याएँ) लेकर, उनसे वृत्त ’ड्रॉ’ कर, उनकी परिधियाँ नापकर परिधि को व्यास से विभाजित कर ’पाई’ / 'π'  का लगभग मान दशमलव के तीन अंकों तक निकालना होता था । मैंने भी आसानी से निकाल दिया, तो शिक्षक ने मुझे शाबाशी दी । दूसरे लड़के मुझसे कम चालाक थे । या उनकी चालाकी किसी और क्षेत्र में तो थी पर गणित में उतनी नहीं थी । लेकिन मैं उनसे अधिक चालाक था । मैं त्रिज्या को 2π से गुणा कर, बिना नापे ही परिधि का नाप लिख देता था और दशमलव के बाद के चौथे अंक को इस प्रकार ’एड्जस्ट’ करता था कि औसत-मान ’पाई’/ 'π' के वास्तविक मान से सन्निकट हो ।
जब शिक्षक ने मुझे शाबाशी दी तो जहाँ एक ओर दूसरे लड़के जल-भुन गए, वहीं मैंने शिक्षक से बड़ी नम्रतापूर्वक प्रश्न किया :
"सर, लेकिन इस पूरे प्रश्न में मुझे एक बुनियादी भूल नज़र आ रही है!?"
वे मुझे आश्चर्य से देखने लगे । बोले :
"क्या भूल है?"
बाक़ी लड़के भी मुँह बाए बोर होते हुए हमें ताक रहे थे ।
मैंने बड़े भोलेपन से पूछा :
"सर, त्रिज्या सरल-रेखा होती है, जबकि परिधि वक्र रेखा होती है..."
"तो?"
शिक्षक ने पूछा ।
"सर, मुझे नहीं पता कि सरलता का वक्रता से कभी कोई संबंध होता भी है, या हो भी सकता है क्या?"
"मतलब"
मेरी हिम्मत बढ़ी ।
’सर सीधेपन और टेढ़ेपन के बीच कोई संबंध कभी हो सकता है क्या?"
वे सर खुजलाने लगे । उन्हें मेरी बात समझ में आई या नहीं मैं नहीं जानता । उन्होंने डपटकर मुझसे बैठ जाने के लिए  कहा ।
बरसों बाद जे.कृष्णमूर्ति को पढ़ते समय महसूस हुआ कि मेरा प्रश्न अब भी उतना ही सशक्त और उससे कहीं बहुत अधिक प्रासंगिक है ।
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