आज की कविता / पेरिस 13/11, मुम्बई 26/11,...
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समर्पित पेरिस को, मुम्बई को,...
वो सुर्ख़ ज़िन्दगी का हो,
वो सुर्ख़ हो या फ़िर ख़ूँ का,
वो ज़र्द भले डर का हो,
भले ही हो मातम का!
कभी सुर्ख़ कभी ज़र्द,
कभी गर्म कभी सर्द,
जवाकुसुम गुड़हल,
हर रंग दिल में दर्द!
वो सुर्ख़ जो खुशियों का हो,
वो सुर्ख़ हो रंगे-इश्क़
वो ज़र्द जो हो बेबसी,
या हो मायूसी ज़ुदाई की,
जवाकुसुम गुड़हल,
हर रंग दिल में दर्द!
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समर्पित पेरिस को, मुम्बई को,...
वो सुर्ख़ ज़िन्दगी का हो,
वो सुर्ख़ हो या फ़िर ख़ूँ का,
वो ज़र्द भले डर का हो,
भले ही हो मातम का!
कभी सुर्ख़ कभी ज़र्द,
कभी गर्म कभी सर्द,
जवाकुसुम गुड़हल,
हर रंग दिल में दर्द!
वो सुर्ख़ जो खुशियों का हो,
वो सुर्ख़ हो रंगे-इश्क़
वो ज़र्द जो हो बेबसी,
या हो मायूसी ज़ुदाई की,
जवाकुसुम गुड़हल,
हर रंग दिल में दर्द!
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"हर रंग दिल में दर्द " बहुत खूब ।
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