आज की कविता
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एक खामोश काली परछाई
तैरती है रहती दिलों के उजालों पर
हालाँकि आसमान देखने पर,
कोई पंछी नज़र नहीं आता ।
एक खामोश काली परछाई...
तुम को भूत ने पकड़ रखा है,
भूत को किसने पकड़ रखा होगा?
जिसने भी पकड़ रखा होगा उसको,
उसको साये ने जकड़ रखा होगा,
उसी साये ने जो कि है काली,
एक खामोश काली परछाई...
इसलिए देखने पर भी आसमां,
कोई पंछी नज़र नहीं आता,
कोई उजला या काला सुरमई या,
भूरा, रंगीन या कि चितकबरा,
गो कि उड़ते रहते हैं आसमां पर वो,
जैसे खामोश काली परछाई...
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एक खामोश काली परछाई
तैरती है रहती दिलों के उजालों पर
हालाँकि आसमान देखने पर,
कोई पंछी नज़र नहीं आता ।
एक खामोश काली परछाई...
तुम को भूत ने पकड़ रखा है,
भूत को किसने पकड़ रखा होगा?
जिसने भी पकड़ रखा होगा उसको,
उसको साये ने जकड़ रखा होगा,
उसी साये ने जो कि है काली,
एक खामोश काली परछाई...
इसलिए देखने पर भी आसमां,
कोई पंछी नज़र नहीं आता,
कोई उजला या काला सुरमई या,
भूरा, रंगीन या कि चितकबरा,
गो कि उड़ते रहते हैं आसमां पर वो,
जैसे खामोश काली परछाई...
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