Thursday, 15 October 2015

आज की कविता / अभाव

आज की कविता
अभाव
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चेतना में देह, देह में चेतना  है प्रतिबिंबित यह,
चेतना-प्रतिबिंब में पुनः फिर, देह का प्रतिबिंब,
देह के उस प्रतिबिंब में, प्राण के हैं पवन-झोंके,
पवन-झोंके उठाते हैं अस्मिता की तरंगें जो,
उत्पन्न करते आभासी निरंतरता अस्मि की,
अस्मि बनता और मिटता जन्म देता काल को,
काल पल या युगों सा, केवल कल्पित अस्तित्व,
विचारों की आँधियाँ, विचारों के चक्रवात,
पवन-झोंके प्राण के परस्पर करते आघात,
विचारों के वर्तुल में विचारक का केन्द्र जो,
एक कल्पित वह विचार, सातत्य देता अस्मि को,
अस्मि जो अनुमान है, अस्मि जो अलगाव है,
चेतना की अखंडता में एक कृत्रिम भाव है ।
पुनः उठता पुनः गिरता पुनः मिटता पुनः खोता,
पर न पाता स्वयं को वह क्योंकि वह अभाव है ।
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