अष्टावक्र गीता
अध्याय १,
श्लोक ७
अहं कर्तेत्यहंमान महाकृष्णाहि दंशितः।।
नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखी भव।।७।।
अर्थ :
'मैं कर्ता', इस प्रकार के कर्तृत्व के अभिमान से ग्रस्त होना, - महान विषैले काले सर्प से दंशित होने के समान है। 'मैं कर्ता नहीं', विश्वास-रूपी इस अमृत का पान करो और सुखी हो रहो।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಯನ ೧
ಶ್ಲೋಕ ೭
ಅಹಂ ಕರ್ತೇತ್ಯಹಂಮಾನ
ಮಹಾಕ್ರಷ್ಣಾಹಿ ದಂಶಿತಃ ||
ನಾಹಂ ಕರ್ತೇತಿ ವಿಶ್ವಾಸಾ-
ಮ್ರತಂ ಮೀತ್ವಾ ಸುಖೀ ಭವ||೭||
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Ashtavakra Gita
Chapter 1,
Stanza 7
Do you who have been bitten by the great black serpent of the egoism "I am the doer," drink the nectar of the faith "I am not the doer," and be happy.
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