Sunday, 23 October 2022

न पृथ्वी न जलं

1/2

अष्टावक्र गीता 

अध्याय १,

श्लोक २,

न पृथ्वी न जलं  नाग्निर्नवायुर्द्यौर्न वा भवान्।।

एषां साक्षिणमात्मानं चिद्रूपं विद्धि मुक्तये।।२।।

--

ನ  ಪೃಥ್ಲೀ ನ ಜಲಂ ನಾಗ್ನಿರ್ನ ವಾಯುರ್ದ್ಯೈ ರ್ಯೌನ ವಾ ಭವಾನ೯।।

ಏಷಾಂ ಸಾಕ್ಷಿಣಮಾತ್ಮಾನಂ ಚಿತ್ರೃಪಂವಿದ್ಧಿ ಮೆಕ್ತಯೇ।।೨।।

--

तुम न तो पृथ्वी, न जल, न अग्नि, न वायु, न द्यौ, हो। 

मुक्ति प्राप्त करने के लिए तुम इनके साक्षी को अर्थात् अपने चिद्रूप आत्मा को जान लो और इस  तरह से मुक्ति का लाभ प्राप्त कर लो।

--

2. You are neither earth, nor water, nor fire, nor air, nor ether.

In order to attain liberation, realize yourself as the knower of all these and consciousness itself.

***






No comments:

Post a Comment