अष्टावक्र गीता,
अध्याय १,
श्लोक ३
यदि देहं पृथक्कृत्य चिति विश्राम्य तिष्ठसि।।
अधुनैव सुखी शांतो बन्धमुक्तो भविष्यसि।।३।।
अर्थ --
यदि देह को (जड की तरह और स्वयं को चेतन की तरह अपने से) पृथक् कर चेतना / चित् में विश्राम करते हुए अवस्थित रहो, तो अभी ही सुखी, शान्त और बन्धन से मुक्त हो जाओगे।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಅಧ್ಯಾಯ ೧
ಯದಿ ದೇಹಂ ಪೃಥಕ್ಕೃ ತ್ಯ ಚಿತಿ ವಿಶ್ರಾಮ್ಯ ತಿಷ್ಠಸಿ |
ಅಧುನೈವ ಸುಖೀ ಶಾಂತೋ ಬಂಧಮುಕ್ತೇ ಭವಿಷ್ಯಸಿ||೩||
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Ashtavakra Gita,
Chapter 1,
Stanza 3.
3. If you detach the body and rest in Intelligence, you will at once be happy, peaceful and free from bondage.
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