Thursday, 27 October 2022

एको दृष्टासि सर्वस्य

अष्टावक्र गीता 

अध्याय १

श्लोक ६

एको दृष्टासि सर्वस्य मुक्तप्रायोसि सर्वदा।।

अयमेव हि ते बन्धो दृष्टारं पश्यसीतरम्।।६।।

(एकः दृष्टा असि सर्वस्य मुक्तप्रायः असि सर्वदा। अयं एव हि ते बन्धः दृष्टारं / द्रष्टारं पश्यसि इतरम्।।)

अर्थ :

तुम ही सब / समष्टि के एक, और एकमेव दृष्टा हो, और अवश्य ही सब प्रकार से, सर्वत्र और सदा ही मुक्तप्राय ही हो। मुक्तप्राय इसलिए, क्योंकि जो यह एकमेव दृष्टा तुम हो, उसको तुम अपने से पृथक् किसी इतर या अन्य की भाँति देखते हो। यही तुम्हारा बन्धन है।

ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ

ಅಧ್ಯಾಯ ೧

ಶ್ಲೋಕ ೬

--

ಏಕೋ ದ್ರಷ್ಟಾಸಿ ಸರ್ವಸ್ಯ ಮುಕ್ತಪ್ರಾಯೇऽಸಿ ಸರ್ವದಾ ||

ಅಯಮೂವ ಹಿ ತೇ ಬಂಧೋ ದ್ರಷ್ಟಾರಂ ಪಶ್ಯಸೀತರಮ್ ||೬||

--

Ashtavakra Gita

Chapter 1

Stanza 6.

You are the one seer of all and really ever free. Verily your bondage is this alone, that you see the seer as other than such.

***




No comments:

Post a Comment