अष्टावक्र गीता
प्रथमोध्यायः
अष्टावक्र उवाच --
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान्विषवत्त्यज।।
क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद्भज।।१।।
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ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಗೀತಾ
ಪ್ರಥಮೇಧ್ಯಾಯಃ
ಅಷ್ಟಾವಕ್ರ ಉವಾಚ --
ಮುಕ್ತಿಮಿಚ್ಛಸಿ ಚೇತ್ತಾತ ವಿಷಯಾನ್ವಿಷವತ್ತ್ಯಜ।।
ಕ್ಷಮಾರ್ಜವದಯಾತೋಷ-ಸತ್ಯಂ ಪೀಯೇಷವತ್ಭಜ।।೧।।
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अष्टावक्र उवाच --
यदि तुम्हें मुक्ति प्राप्त करने की अभिलाषा है, तो वत्स! विषयों को विषतुल्य जानकर उन्हें त्याग दो। और क्षमा, आर्जव (मन की सरलता, दंभ, छल-कपट आदि से रहित होना), दया, संतोष तथा सत्य को अमृत जानकर उन्हें ग्रहण करो।
Ashtavakra said --
1. O child! If you aspire after liberation, shun the objects of the senses as poison and seek forgiveness, sincerity, kindness, contentment and truth as nectar.
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