Monday, 16 September 2024

From अरण्यकाण्डम्

गोस्वामीश्री तुलसीदास कृत रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड से

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नमामि भक्तवत्सलम् । कृपालुशीलकोमलं।। 

भजामि ते पदाम्बुजम् । अकामिनां स्व-धामदम्।।

निकाम श्यामसुन्दरम् । भवाम्बुनाथमन्दरम्।।

प्रफुल्लकञ्जलोचनम् । मदादिदोषमोचनम्।। 

प्रलम्बबाहु-विक्रमम् । प्रभोऽप्रमेयवैभवम्।।

निषङ्गचापसायकम्। धरं त्रिलोकनायकम्।।

दिनेशवंशमण्डनम्। महेशचाप-खण्डनम्।।

मुनीन्द्रसन्तरञ्जनम्। सुरारिवृन्दभञ्जनम्।।

मनोजवैरिवन्दितम्। अजादिदेव सेवितम्।।

विशुद्ध-बोध-विग्रहम्। समस्तदूषणापहम्।।

नमामि इन्दिरापतिम्। सुखाकरं सतां गतिम्।।

भजे सशक्ति-सानुजम्। शचीपतिं प्रियानुजम्।।

त्वदङ्घ्रिमूल ये नरा। भजन्ति हीन-मत्सरा।।

पतन्ति नो भवार्णवे। वितर्कवीचिसङ्कुले।।

विविक्तवासिनः सदा। भजन्ति मुक्तये मुदा।। 

निरस्य इन्द्रियादिकम्। प्रयान्ति ते गतिं स्वकम्।।

तमेकमद्भुतं प्रभुम्। निरीहमीश्वरं विभुम्।।

जगद्गुरुं च शाश्वतम्। तुरीयमेव केवलम्।।

भजामि भाववल्लभम्। कुयोगिनां सुदुर्लभम्।।

स्वभक्तकल्पपादपम्। समं सुसेव्यमन्वहम्।।

अनूपरूपभूपतिम्। नतोऽहमुर्विजापतिम्।।

प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्जभक्ति देहि मे।।

फलश्रुतिः

पठन्ति ये स्तवं इदम्। नरादरेण ते पदम्।।

व्रजन्ति नात्र संशयम्। त्वचीय भक्ति-संयुता।। 

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