Hindi Poetry
हिन्दी कविता
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कर रहे हैं कल्कि कलरव
भीत दैत्य, भीत दानव,
भीत राक्षस, भीत मानव!
ओतप्रोत भय से जन जन,
भीत देव, भीत असुर,
भीत यक्ष, पिशाच भी,
मोह-पीड़ित, विश्व सारा,
आतंकित, आशंकित!
कर रहे भविष्यवाणी,
ज्योतिषी, भविष्यवेत्ता,
रहस्यदर्शी भी हैं अभी,
किन्तु किसे है सच पता,
अनुमान करते हैं सभी!
आगमन की है प्रतीक्षा,
आगमन होना है जिनका,
वे राम हैं या कृष्ण हैं,
रुद्र हैं या कल्कि हैं,
किन्तु कंपन वायु में है,
कंपित दिग्-दिगन्त है,
भीत जगत् जड चेतन,
भीत सन्त-महन्त हैं!
और किसी अप्रत्याशित,
नितान्त ही अनपेक्षित,
क्षण पर अतिथि आएँगे,
करते हुए आश्चर्यचकित!!
अधर्म से न होना मोहित,
अज्ञान से न होना भ्रमित,
कर्तव्य में संलग्न रहना,
अविचलित, प्रमादरहित!
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