Monday, 24 February 2025

Is That True?

क्या यह सत्य है?

"भविष्य भी वर्तमान को उतना ही प्रभावित करता है जितना कि वर्तमान भविष्य को!"

यह वक्तव्य अविश्वसनीयता की सीमा तक रहस्यात्मक, त्रुटिपूर्ण या शायद हास्यास्पद भी प्रतीत हो सकता है।

यह कल्पना तक कर पाना हमारे लिए असंभव नहीं, तो बहुत कठिन अवश्य है कि यह कैसे हो सकता है कि जो अभी कहीं नहीं दिखलाई पड़ता, और अभी जिसे ठीक से हम जानते तक नहीं हैं, वह हमारे वर्तमान / अभी को कैसे प्रभावित कर सकता है?

अब उपरोक्त वक्तव्य की तुलना इस वक्तव्य से करें :

"अतीत भी वर्तमान को उतना ही प्रभावित करता है, जितना कि वर्तमान अतीत को!"

इस वक्तव्य पर शायद ही किसी को कोई आपत्ति या इस पर किसी का कोई विरोध हो सकता है। क्योंकि अतीत तो किसी चट्टान की तरह ऐसा अचल, अटल और ठोस अनुभव होता है कि उसे बदल पाने की बात तक करना हास्यास्पद लगता है।

फिर भी, जिसे हम अतीत कहते हैं वह अनिवार्य रूप से  किसी न किसी सन्दर्भ पर आश्रित होता है, इसमें संदेह नहीं है। और सन्दर्भ के बदलते ही वह अतीत जो कि हमें सर्वाधिक ठोस, अचल, अटल और अपरिवर्तनीय सा जान पड़ता था, तत्क्षण ही रेत की कच्ची दीवार जैसा ढह जाता है।

तात्पर्य यह कि हम अतीत को नहीं बल्कि अतीत के बारे में अपने उस विचार को ही जानते हैं जो कि अभी / इस समय, वर्तमान में हमारे मन में होता है। और उस सन्दर्भ में शायद यह कहना गलत भी नहीं है कि वह अतीत उस संपूर्ण और समूचे अतीत का एक नगण्यप्राय अंशमात्र है, जिसे कि हम जानते हैं।

फिर आसन्न और तात्कालिक भविष्य के अतिरिक्त ऐसा कोई भविष्य कहाँ होता है जिसे कि हम सुनिश्चित रूप से और वस्तुतः अक्षरशः वैसा ही जान सकें जैसा वह घटित होने जा रहा है? 

अतः स्पष्ट है कि भविष्य तो नहीं, भविष्य के बारे में उस भविष्य की कल्पना और उस कल्पना के आधार पर हम जैसा और जो कुछ सोचते हैं वैसा और वह विचार हमारे वर्तमान को अत्यन्त गहराई से प्रभावित करता है। यहाँ तक कि कभी कभी और अकसर ही जब भी हम भविष्य को बनाने, बिगाड़ने या बदलने के बारे में सोचते हैं तब तो यह "विचार" ही होता है जो कि हमारे "वर्तमान" या अभी पर हावी होता है, और उससे प्रभावित होकर वह सब करने हेतु हम तत्पर हो उठते हैं जिसे भी करना हमें  आवश्यक प्रतीत होता है।

क्या यह सत्य नहीं है?

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