राज को राज रहने दो!
राज खुलने का तुम पहले,
जरा अंजाम सोच लो!
इशारों को अगर समझो,
राज को राज रहने दो!!
ये पंक्तियाँ किसी फिल्मी गीत में 1975 के आसपास सुनी थीं। स्कन्द पुराण में पाण्डवों के कुल में उत्पन्न हुए बर्बरीक का उल्लेख है। संभवतः यही बर्बरीक तुरग / तुर्क परंपरा में जाकर बबरक हो गया होगा। तुर्क शब्द का अर्थ है त्वरायुक्त जो अश्वों की एक प्रजाति-विशेष का सूचक है।
अश्व वाजि हय घोटक घोड़ा तुरंग
ये सभी शब्द अश्वः के पर्याय हैं। और अंग्रेजी भाषा का शब्द horse भी अश्वः का ही वैसा ही अपभ्रंश मात्र है जैसे Yester-day संस्कृत भाषा के ह्यः ह्यःतर दिव् का अपभ्रंश है।
बर्बरीक से बर्बर / बब्बर की व्युत्पत्ति ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य दोनों ही प्रकार से समझी जा सकती है। याद आता है ऋग्वेद मण्डल १ का सूक्त १६३ जिसमें अर्वन् / अर्वण् / अरब जाति की उत्पत्ति का स्पष्ट उल्लेख पाया जा सकता है।
वाल्मीकि रामायण में ऋषि वसिष्ठ की गौ और विश्वामित्र की सेना के बीच हुए युद्ध के समय उस गौ से उत्पन्न हुई विभिन्न मानव प्रजातियों जैसे म्लेच्छ या मलेच्छ, यवन, बल-ओज -- बलोच, पुष्टाः -पश्तून, (Mlecca, Jew), शक आदि प्रजातियों का उल्लेख देखा जा सकता है।
बाबर जो मुगल था, संभवतः उसका मंगोलिया से संबंध रहा होगा। यह सब अनुमान है। इन अनुमानों की पुष्टि वेदों, उपनिषद्, पुराणों, और स्मृतियों आदि ग्रन्थों से भी होती है।
संसार भर में प्रचलित भाषाओं की उत्पत्ति के बारे में भी इन तमाम ग्रन्थों में विस्तार से वर्णन है।
श्रीमद्भगवद्गीता के पहले ही अध्याय में यह उल्लेख है कि महाभारत युद्ध में संपूर्ण पृथ्वी के भिन्न भिन्न राजाओं की 18 अक्षौहिणी सेना कुरुक्षेत्र के विस्तृत रणांगन पर युद्ध करने के लिए एकत्र हुई।
इसी तरह से भविष्य पुराण तथा दूसरे कुछ ग्रन्थों में भी भगवान् विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के प्राकट्य के बारे में संकेत प्राप्त होते हैं।
और अगर पिछले पाँच सौ वर्षों से भी अधिक समय से हो रही घटनाओं के क्रम को देखें तो स्पष्ट होगा कि यह सब ईश्वरीय विधान में पूर्व प्रायोजित जैसा है। हम सब तो उस दिव्य ईश्वरीय विधान से परिचालित मोहरे मात्र हैं और जैसी बुद्धि हमें प्राप्त होती है, उससे प्रेरित होते हुए विभिन्न कर्मों में संलग्न होते हैं। चाहकर या फिर न चाहते हुए भी हम किसी भी उस कर्म से संलग्न या विरत नहीं हो सकते जो हमारे माध्यम से होना होता है, और यद्यपि हम उसका औचित्य कर्तव्य और आदर्शों की कसौटी पर सिद्ध भी कर देते हैं पर हमारी इस कर्तृत्व बुद्धि से प्रेरित होकर ही वह कर्म हमसे घटित होता है और हमारा ध्यान इस ओर भी नहीं जा पाता कि समस्त कर्म अवधारणा है और न तो कहीं किसी कर्ता का ही अस्तित्व है, न किसी कर्म का। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ५ के अनुसार :
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।१४।।
नादत्ते कस्यचित्पापं सुकृतं चैव न विभुः।।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।।१५।।
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितं आत्मनः।।
तेषां आदित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत् परम्।।१६।।
और, यह रोचक है कि संपूर्ण गीता के प्रारंभ और अन्त के दो बिन्दुओं को अध्याय २ के ९ वें और अध्याय १८ के ५९ वें श्लोक में एक शब्द "योत्स्य" अर्थात् "योत्स्ये" में प्रयुक्त किया गया है -
सञ्जय उवाच --
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।९।।
(अध्याय २)
तथा,
यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।।
मिथ्यैषः व्यवसायस्ते प्रकृतिस् त्वां नियोक्ष्यति।।५९।।
(अध्याय १८)
वर्ष 2019 के नवंबर माह में कोरोना-काल था, और जब एक स्थान पर किसी यज्ञ का अनुष्ठान सूर्यग्रहण के समय किया जा रहा था, 25 / 26 दिसंबर को जैसा ज्योतिषीय षड्ग्रही योग बन रहा था, वर्ष 2025 में भी उसी प्रकार का ज्योतिषीय योग बनने जा रहा है। और बहुत से ऐसे ज्योतिषी जिन्हें ज्योतिष का थोड़ा या फिर विशेष ज्ञान भी है, इसलिए अत्यन्त रोमांचित और होकर भविष्य में झाँकने की चेष्टा कर रहे हैं। जिनके पास समय है, ऐसे लोग भी जानने के लिए उत्सुक हैं कि तृतीय विश्वयुद्ध कब होगा, कौन बचेगा और कौन नहीं बचेगा ! चिन्ता, भय, रोमांच, विस्मय से हर कोई मुग्ध है।
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