आज की संस्कृत रचना
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वृषारूढो भगवान् शिवो,
वृषभारूढो शंकरो ।
नन्दी नतमस्तकं तत्र
अपि गर्वोद्धतमस्तकं ॥
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अर्थ :
विरोधाभास !
भगवान् शिव-शंकर जब वृषभ पर आरूढ होते हैं तो नन्दी एक ओर तो विनम्रता से उनके सम्मुख-नत मस्तक होता है, वहीं दूसरी ओर गर्व से उन्नत / उद्धत-मस्तक !
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vṛṣārūḍho bhagavān śivo,
vṛṣabhārūḍho śaṃkaro |
nandī natamastakaṃ tatra
api garvoddhatamastakaṃ ||
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Meaning :
When Lord śiva rides nandī, nandī with respect happily bows his head before Him , and raises too because of pride!
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वृषारूढो भगवान् शिवो,
वृषभारूढो शंकरो ।
नन्दी नतमस्तकं तत्र
अपि गर्वोद्धतमस्तकं ॥
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अर्थ :
विरोधाभास !
भगवान् शिव-शंकर जब वृषभ पर आरूढ होते हैं तो नन्दी एक ओर तो विनम्रता से उनके सम्मुख-नत मस्तक होता है, वहीं दूसरी ओर गर्व से उन्नत / उद्धत-मस्तक !
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vṛṣārūḍho bhagavān śivo,
vṛṣabhārūḍho śaṃkaro |
nandī natamastakaṃ tatra
api garvoddhatamastakaṃ ||
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Meaning :
When Lord śiva rides nandī, nandī with respect happily bows his head before Him , and raises too because of pride!
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