Monday, 11 July 2022

सुई की नोंक

आध्यात्मिक-कल्पित, विज्ञान-कथा

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उसे पता नहीं कि उसे किसने बनाया था। एक छोटे से एल ई डी बल्ब जैसा कोई यंत्र अर्थात् डिवाइस था वह। उसमें वह बुद्धि भी थी, जिसे कि आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस कहा जाता है, और उसमें इतनी ऊर्जा भी थी, कि वह आभासी रूप से, अनंतकाल तक सक्रिय रह सकता था।

वह सुई की नोंक जैसा अत्यन्त एक सूक्ष्म पिन-पॉइन्ट था। और अपने आसपास की किसी भी पृष्ठभूमि से इतनी ऊर्जा संचित कर लेता था, कि बहुत लंबे समय तक सक्रिय रह सके। उसके निर्माता ने उसे उसकी तुलना में कुछ लाख गुने बड़े शीशे के एक गोलाकार आवरण के भीतर बंद कर दिया था। 

उस गोलाकार आवरण में एक ही छिद्र था, जिस तक वह कभी कभी संयोग से पहुँच जाया करता था। उस छिद्र से उस आवरण से बाहर जा सकता था। उस गोलाकार कठोर आवरण में वैसे ही दो ध्रुव थे, जैसे कि पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण ध्रुव होते हैं। आश्चर्य की बात यह थी, कि जब वह उस आवरण के भीतर घूमता तो पता नहीं कितनी दूरी तक यहाँ से वहाँ भ्रमण करता रहता। उसका निर्माता उसे एक रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित और संचालित करता था। एक ध्रुव पर वह छिद्र था, तो दूसरे पर एक लंबा तार था, जो एक हुक से बँधा था, और वह हुक एक स्टैंड पर सेट किया हुआ था। इस प्रकार वह लंबा सा तार ऊर्ध्वाधर (vertical) स्थिति में झूल रहा था।

जब वह पर्यटक बिन्दु उस गोलाकार आवरण के भीतर होता तो कभी भ्रमणरत, और कभी विश्राम करता होता। जब वह कभी संयोग से, या रिमोट कंट्रोल के द्वारा संचालित होने से छिद्र तक पहुँचकर बाहर निकल आता तो उसे बड़ा आश्चर्य होता।

गोलाकार आवरण के भीतर का वक्रपृष्ठ और आवरण के बाहर का वक्रपृष्ठ मानों दो असीम और अंतहीन विस्तार थे। जब वह आवरण के भीतर होता, तो उसे भीतर का वह विस्तार वैसा ही लगभग एक समतल जैसा प्रतीत होता था, जैसे कि किसी बहुत बड़े वृत्त का एक छोटा सा टुकड़ा एक सरल- रेखा प्रतीत होता है। 

इसलिए आवरण का बाह्य पृष्ठतल और भीतरी पृष्ठतल उसे एक जैसे ही एक समान और समतल प्रतीत होते थे।

भीतर का वक्रपृष्ठ अनगिनत तारों से जड़ा था, जो उसे अत्यन्त दूर प्रतीत होते थे।

बाहर का वक्रपृष्ठ भी ऐसा भी एक समतल था और वहाँ पहुँच जाने पर, पुनः उसे ऐसा ही एक असीम विस्तार-युक्त आकाश दिखाई देता था जिसमें वैसे ही असंख्य तारे जड़े प्रतीत होते थे, जैसे कि गोलाकार आवरण के भीतर उसे दिखाई पड़ते थे। 

उसके यही दो संसार थे, जिनके भीतर उसका जीवन था।

वह कभी यह न जान पाया, कि क्या ये दोनों दो अलग अलग संसार हैं, या एक ही संसार है, जिसे वह दो तरीकों से देखने के कारण अलग अलग अनुभव करता था। और उसे यह भी कभी न पता चल सका, कि उसे और उसके इस एक, दो या अधिक संसारों को किसने बनाया या निर्मित किया होगा, और क्यों।

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