Tuesday, 12 July 2022

अधिष्ठान और अधिष्ठाता

सूयते : सूचीयंत्र - सुई का इंगित

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मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।।

हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते।।१०।।

(गीता, अध्याय ९)

कौन है विधाता, इस चर-अचर जगत् का? 

उस पर्यटक बिन्दु की चेतना में प्रश्न उठा। तब उसका ध्यान सुई के शीर्ष-बिन्दु पर एकाग्र हो गया। तब उस सुई की उस नोंक ने उसके अपने ही चारों ओर परिभ्रमण करना प्रारंभ कर दिया। जैसे कि घड़ी की सुई घूमती है। यह बड़ी सुई, उससे छोटी एक सुई और उससे अलग एक वृत्त में घूमती बहुत छोटी सी एक और सुई!

तब उसने उस बड़ी सुई के मार्ग को काल के प्रमाण से निर्धारित कर चौबीस अंशों में विभाजित किया। बारह अंश, जो आदित्यों के बारह रूप, और पूरे सौर संवत्सर के बारह मासों के द्योतक थे / हैं। दूसरे बारह अंश, आदित्य के अस्त हो जाने के बाद तथा उसके पुनः उदित हो जाने तक के काल के प्रमाण का निर्धारण थे।

तब उसने जो कि स्वयं ही यंत्र भी था और ईश्वर भी था, अपने आपको अंशों या अंकों में व्यक्त किया। उसने सर्वप्रथम ईश्वर और उसके अंशों को परिभाषित किया, और इसके लिए एक  algorithm / सूत्र का आविष्कार किया। उसने कहा :

"ईश्वर उसके समस्त अंशों का योग होता है।" 

तब उसने ईश्वरीय पूर्ण अंक के उदाहरण के रूप में षटक् या ६ की संख्या को प्रथम ईश्वरांक का नाम प्रदान किया, क्योंकि यह अंक अपने भाजकों के योग के बराबर होता है :

६ = १+२+३,

१, २ और ३ का गणितीय योग ६ होता है।

१, २ और ३ इकाई के अंक हैं।

इसे उसने दहाई (१०) से गुणित कर ६० घटी को दिन-रात्रि में व्यतीत होनेवाले काल के रूप में निर्धारित किया। ३० घटी का दिन और ३० घटी की रात्रि। पुनः दिन और रात्रि को चार चार प्रहरों में विभाजित किया। मुहूर्त, पल, आदि की रचना की।

दिन रात्रि के पुनः बारह-बारह भाग किए और कोण (cone) की रचना की, जो ज्यामितीय प्रयोजन को पूर्ण करता है।

दिन के बारह भागों की पुनरावृत्ति और फिर रात्रि के बारह भागों की भी। तब बड़ी सुई और छोटी सुई को एक ही वृत्त के केन्द्र से इस प्रकार से समायोजित किया कि दोनों सुईयाँ केन्द्र पर स्थित होकर उसके चारों ओर परिभ्रमण करती हों। बड़ी सुई , -- बारह बार पूरा भ्रमण जितने समय में करती थी, वह दिन के और वैसे ही रात्रि के भी बारहवें भाग का द्योतक था।

क्षण / षटक् / second अर्थात् ६ को दहाई से गुणित कर साठ क्षणों की एक मिनति / minute. साठ मिनति की एक कला (hour / clock / of clock / o'clock).

दिन रात सतत गतिशील समय। अहो-रात्र । जिसे संक्षेप में होरा कहा जाता है। होरा अर्थात् hour.

(Ein Uhr oder die Uhr - Eine Uhr -- Deutsche sprache).

इस प्रकार दिन रात्रि के काल परिमाण (time-span) को २४ कलाओं / कलाक् में विभाजित किया गया। 

कला, काल और काली दैवी / आधिदैविक अधिष्ठातृ सत्ताएँ उससे भिन्न होते हुए भी उससे अभिन्न और अनन्य हैं, - उसे पता चला।

अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।।

भूतभर्तृं च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु च प्रभविष्णु च।।१६।।

(गीता, अध्याय १३)

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।।

अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।२०।।

(गीता, अध्याय १८)

इस प्रकार अन्वय-व्यतिरेक से उसने आत्मा के तत्व को साक्षात् किया।

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