Tuesday, 26 January 2016

The Rickety-Bridge on varuṇā

The rickety-bridge on varuṇā
जे.कृष्णमूर्ति से जुड़े एक व्यक्ति से मिलना हुआ । मेरे हम-उम्र होने से हमारे बीच बातचीत की संभावनाएँ और तालमेल था । 

"हम भले ही किसी को पढ़ते रहें किसी की प्रशंसा करें या नापसन्द करें, भीतर से हम न तो किसी को छू पाते हैं न छू सकते हैं न कोई हमें ।"
वह नपे-तुले शब्दों में बोला । 
गंगा में मिलती हुई वरुणा चुपचाप हमें सुन रही थी । उसके उपर बना कच्चा पुल जिस पर से लोग आ-जा रहे थे, जीर्ण-शीर्ण होने पर भी इतना मजबूत तो था ही कि आनेवाली बरसात तक काम देता रहे । हर बरसात में उसे ध्वस्त हो जाना होता है और पुल को बनाने और उसकी देखभाल करनेवाले अक्सर स्वयं ही बारिश शुरु होने से पहले ही, अंतिम दिनों तक इसका उपयोग हो जाने के बाद इसे तोड़ देते हैं, इसकी लकड़ी की बल्लियाँ और खंभे, तख़्ते, बाँस, रस्सियाँ आदि समेटकर सहेज लेते हैं । पुल शायद "वासांसि जीर्णानि ..." को स्मरण कर खुशी-खुशी अपने आमूल-परिवर्तन को स्वीकार कर लेता होगा । 
हम उस जगह पहुँच चुके थे जिसे ’सन्सेट-पॉइन्ट’ कहते हैं । वरुणा के किनारे, किनारे से दूर कुछ ऊँची जगह जहाँ वरुणा कभी नहीं पहुँचती; -बरसात में गंगा द्वारा लील लिये जाने पर भी, शायद ही कभी वहाँ तक पहुँचती हो । कहा जाता है कि अगर गंगा वहाँ पहुँच जाए तो काशी जलमग्न हो जाएगा, जो कि असंभव है । 
काशी, जो बस राजघाट से लगा ही है ।
"अगर कोई किसी वज़ह से अपना कौमार्य गँवा बैठे तो यह उतना दुःखद नहीं होता जितना कि सरलता को खो बैठना।"
सुनकर मैं अपनी हँसी रोक न सका।  
'Sir, This is not laughing matter!'
यह एक वाक्य था जिसे जे. कृष्णमूर्ति कभी कभी कहा करते थे।  
"हाँ, मैं समझता हूँ। "
मैंने कहा। 
"कौमार्य तो भूल से, किसी के प्रलोभन या बल-प्रयोग से भी खो सकता है, लेकिन सरलता को कोई आपसे छीन नहीं सकता।"
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उस पहली मुलाक़ात में हम इतनी ही बातें कर थे। 
सुना है वरुणा बहुत दूषित हो गई है, उम्मीद है अगली बरसात तक साफ़ हो जाएगी।  मैं नहीं जानता कि वह गंगा में मिलकर उतनी साफ़ बनी रहेगी ?
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Met a man interested in J.Krishnamurti's teachings. Being in the same age-group we instantly became friends and could talk well.
"Though we may read and appreciate one, hardly he could ever touch our inner being or we of him."
He remarked in calculated words.  
varuṇā, the tributary of Ganges was listening our talks silently without making a fuss. The rickety-bridge they build every year after the rains are over, had though a tattered look, it could well serve the people who tread over it, for crossing the river. Before every rainy season, they dismantle the bridge and get the wood-logs, the flat wooden pieces, bamboo and the ropes and preserve the same for the next season.
May be according to "वासांसि जीर्णानि ...", the bridge might have felt no sad over being lost this perishable body. May be it knew well and was prepared for the 
'Radical Transformation',
J. Krishnamurti occasionally referred to.
We reached at the top of the land where they say; J.Krishnamurti used to watch the 'sun-set'. This land quite up and well above the river-bank, was so high, varuṇā even if in spate, could never have thought of touching it. And Ganges, too couldn't because This was 'Kashi' Shiva's very abode, and Ganges reaching here meant the whole world will be inundated under it. And that is almost impossible until Shiva desires.
'Kashi' is just adjoining area to Rajghat Fort, Varanasi, the location of Krishnamurti Study Center.
"If some-one loses his / her virginity because of reasons, beyond circumstances beyond one's control, because of innocence, or being forced / cajoled to do so, that is not as much grievous as losing the simplicity, the innocence one has when one is born in the world."
He added.
I couldn't stop laughing.
'Sir! This is not laughing matter!' 
He admonished me in a tone that reminded me of J.Krishnamurti.
"Yes, ... yes I see!"
" You see your virginity could be snatched away from you at gun-point or by coercion,  or enticement, but no one could ever snatch your innocence your simplicity. that is your Freedom."
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In that first meeting we talked this much only.
I hear varuṇā has been much polluted, and hope will purify, make clear itself in the forth-coming rains. Though I am not sure how pure it would stay after joining Ganges.
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