जिज्ञासा : बीजमंत्र क्या होता है, कभी समय मिले तो इस विषय पर अपने ब्लॉग में प्रकाश डालिएगा।
उत्तर : संस्कृत भाषा में निम्नलिखित ३३ बीजाक्षर अर्थात् मूल वर्ण होते है -
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व श
ष स ह
इनके साथ कोई लघुप्राण या महाप्राण स्वर लगाने पर बीजमंत्र बनता है।
ये ३३ वर्णाक्षर ही ३३ कोटि के देवता हैं। स्वर ही प्राण हैं। प्राण (शक्ति) और चेतना (ज्ञान) मिलने पर ही देवता तत्व सक्रिय हो सकता है। एक विशेष वर्ण ॐ है जिसमें केवल स्वर होते हैं।
इस प्रकार कोई बीजाक्षर या बीजमंत्र उस विशिष्ट देवता का मंत्रात्मक स्वरूप होता है, जिसके और भी नाम हो सकते हैं जैसे
ॐ गं गणपतये नमः।।
इस मंत्र में ॐ व्याहृति है, गं बीजाक्षर या बीजमंत्र है जिसका देवता गणपति है।
इस प्रकार कोटि कोटि मंत्र हैं।
यदि संस्कृत के मूल वर्णों के स्थान पर लौकिक वर्णों का प्रयोग किया जाए तो ऐसे भी बहुत मंत्र हर भाषा में पाए जाते हैं। उनके देवता भी आधिभौतिक होते हैं न कि आधिदैविक जो कि ३३ कोटि के होते हैं। इन्हें डाबर, शाबर, डाकिनी, शाकिनी कहा जाता है। इनकी संख्या अनगिनत है।
सवाल यह है,
आप इस जानकारी का क्या उपयोग करेंगे?
संस्कृत भाषा में "सीद्" धातु का प्रयोग "बैठने" के अर्थ में होता है जैसे गीता अध्याय १ में दृष्टव्य है -
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यते।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।।२९।।
अंग्रेजी के sit, sedan, sedantery, इसी के सज्ञात / सजात, अपभ्रंश cognate हैं।
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