प्रमाद और अनवधानता
(Ignorance and In-attention)
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चित्तं चिद्विजानीयात् त-कार रहितं यदा।।
त-कार विषयाध्यासो, प्रमादो मृत्युस्तथा।।
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चित्त को चित् ही जानो, जब वह त-कार से रहित होता है। और यह विषयाध्यास ही त-कार, अर्थात् वह अनवधानता है, जो कि वस्तुतः मृत्युतुल्य है।
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