Wednesday, 15 June 2022

ताजमहल

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हालाँकि मैंने ताजमहल फिल्म को तो कभी नहीं देखा लेकिन उसका गीत :

"जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा, रोके जमाना..." बचपन से ही मुझे प्रिय रहा है।

जब "मुग़ले-आज़म" के गीत "ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद" को देख रहा था, तो मेरे मन में यह जानने की उत्सुकता तक नहीं हुई कि क्या सलीम को मृत्युदंड दिया गया या नहीं। उस वीडियो को अंत तक देखने का धैर्य मुझमें नहीं था। लेकिन फिर याद आया कि यदि सलीम को मृत्युदंड दिया गया होता तो क्या ताजमहल का और उस पर बनी फिल्म का निर्माण हो पाता? तब भारत का इतिहास कितना अलग होता? सोचता हूँ कि क्या इस फिल्म का निर्माण किए जाने के पीछे पृथ्वीराज कपूर का यही मक़सद रहा होगा कि लोग इस बारे में सोचें!? यह भी संभव है कि मैंने यहाँ तथ्यों को गड्ड-मड्ड कर दिया हो! फिर सोचता हूँ कि जब जीते-जी ही तथ्यों को ठीक से याद नहीं रखा जा सकता, तो इतिहास और उसके तथाकथित तथ्यों की प्रामाणिकता कितनी और कहाँ तक विश्वसनीय हो सकती है! लेकिन अब इतिहास और ऐतिहासिक महापुरुषों के बारे में कुछ लिखने से मुझे डर लगने लगा है। सोचता हूँ काश, यह डर सभी को लगने लगे! तब शायद धार्मिक, साम्प्रदायिक, झगड़ों से हम दूर रह सकेंगे। अदालतों का, पुलिस का, और प्रशासन का सिरदर्द भी कम होगा। लेकिन मेरे सोचने से क्या होगा। और जिनके सोचने से कुछ हो सकता है, उन्हें न तो सोचने का वक्त है, न दिलचस्पी है।

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