Monday, 13 June 2022

ज़िन्दाबाद, ज़िन्दाबाद!

ये मुहब्बत ज़िन्दाबाद! 

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मैंने मुग़ले-आजम फ़िल्म 1970 के बाद कभी देखी थी। आज किसी न्यूज़ चैनल पर देखा / सुना कि Way-an-ad के एक  जन-प्रतिनिधि सरकारी एजेन्सी के द्वारा समन का सम्मान प्राप्त होने के बाद जब जवाब देने के लिए एजेन्सी के दफ्तर में हाज़िर होने जा रहे थे, तो समर्थकों ने एक विशाल रैली-प्रदर्शन उनके पक्ष में समर्थन के लिए आयोजित किया।

न्यूज़-चैनल की रिपोर्ट के अनुसार इस आयोजन का थीम-सॉङ्ग यह था :

"ज़िन्दाबाद, जि़न्दाबाद ... "

रिपोर्ट के अनुसार किसी को लगा, कि इस गीत के रचयिता को इसके लिए प्रेरणा मुग़ले-आज़म फिल्म के उस गीत से प्राप्त हुई होगी, जिसे तब गाया गया है, जब सलीम को दण्ड दिया जाना तय हुआ था।

मुझे राजनीति की बारीकियाँ समझ में नहीं आती (वैसे भी किसे आती हैं!?) किन्तु इस गीत को चूँकि मैं बचपन में उत्साहपूर्वक गुनगनाता था इसलिए इसे फिर से एक बार सुनने की उत्सुकता मन में पैदा हुई। 

लेकिन बचपन में भी इसे गुनगुनाते हुए मुझे और एक गीत तुरंत ही याद आने लगता था, जिसके बोल भी एक तरह से इस गीत के भावों के समानार्थी हैं :

"हम यादों के दीप जलाएँ,

और आँसू के फूल चढ़ाएँ,

साँसों का हर तार कहे,

ये प्यार अमर है!

दिल एक मन्दिर है,

दिल एक मन्दिर है,

प्यार की जिसमें होती है पूजा,

ये प्रीतम का घर है!"

इसके तुरंत बाद मुझे याद आता था :

"ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद!" 

ये मुहब्बत ज़िन्दाबाद!

(दोनों गीतों के स्वर और लय मिलते-जुलते होंगे, इसलिए!?)

आज जब इसे समाचार को देखा / सुना तो अचानक याद आया! 

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