अश्वारोही का दृष्टिपथ
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अश्व मेरा श्वास है और श्वान ही है मेरे प्राण,
श्वास मेरा अश्व है और प्राण ही है मेरा श्वान।
मैं चिरन्तन यायावर, पथिक जीवन वन में,
वनचर मैं अनियत आश्रय, मैं हूँ तन मन में।
यह वन भी कितना गहन कितना दुर्गम है,
पर ये दोनों हैं सहचर साथ तो पथ सुगम है।
दोनों का वर्तमान कभी नहीं होता है कल,
अश्व सतत गतिमान, श्वान सतत चञ्चल।
इन वनों को पार कर साथ चलना है अथक,
और भी आयेंगे, साथ रहना है सतत।
श्वास से जब पूछता हूँ, प्राण से भी मैं कभी,
तुम सदा है साथ मेरे, निश्चय ही, नित्य ही।
आशा-निराशा, स्मृति-विस्मृति, चिन्ता या लोभ-भय,
स्वप्न, जागृति, निद्रा, हर्ष, उद्वेग, क्रोध विस्मय।
सभी ये भी वन ही तो हैं, मेरे पथ पर के पड़ाव,
सतत ही अलगाव इनसे सतत ही तो है जुड़ाव।
कारण-वन, कार्य-वन, अभ्यास-वन, संस्कार-वन,
निमिष, नैमिष-अरण्य, अतीत और भविष्य-वन।
विषय-विषयी वृत्ति-वन, प्रवृत्ति और निवृत्ति-वन,
धारणा ध्यान एकाग्रता निरोध और संयम-वन,
विचार-निर्विचार,विकल्प-निर्विकल्प वन।
पथिक हूँ मैं या पथ, सतत यही मनन-चिन्तन,
अनन्त पथ, अनन्त यात्रा, यह है अनन्त जीवन!
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